पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२५८

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हे बारी! यद्यपि कामदेव सारे संसार को जीतने में समर्थ है,

तथापि तेरे लज्जा से भरे मुख की वह प्रंशसा करता है। मै तेरे मुख पर करोड़ो चन्द्रमा को निछावर कर डालू जिस सुख के लिए श्रीकृष्ण आजतक संयमी है अर्थात् नियम किए हुए हैं कि दूसरा मुख न देखूंगा। केशवदास (सखी की ओर से कहते है कि ऐसा सुना जाता है कि तेरे आलस के कारण तेरे मुख की सुगन्ध को कमल ले भागे है। उन कमलो के पास मित्र (सूर्य जैसे हित्, पृथ्वी, दुर्ग, दड़, दल कोष और कुल तथा बल सभी कुछ तो है, न जाने उन्हे किस बात की कमी थी (जो मुख बास चुराई)।

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