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तेरहवां-प्रभाव
२७-समाहित अलंकार
दोहा
हेतु न क्यों हूँ होत जह, दैवयोग ते काज ।
ताहि समाहित नाम कहि, बरणत कविशिरताज ॥१।।
जो कार्य किसी प्रकार भी न हो रहा हो, वह दैव योग से अचानक
हो जाय, तब कवि शिरोमणि उसे समाहित' अलङ्कार कहकर वर्णन
करते है।
उदाहरण (१)
कवित्त
छवि सों छबीली वृषभानु की कुवरि आजु,
रही हुती रूप मद मान मद छकि कै।
मारहू ते सुकुमार नन्द के कुमार ताहि,
आये री मनावन सयान सब तकि कै।
हॅसि, हॅसि, सौहै करि-करि पॉय परि-परि,
केशोराय' की सौ जब रहे जिय जकि के।
ताही समै उठे घनघोर घोरि, दामिनी सी,
लागी लौटि श्याम घन उर सौ लपकि कै ॥२॥
हे सखी । आज छवि ( शोभा) से छबीली वृषभानु की बेटी
राधा, अपने रूप के मद मे मान किये बैठी थी इतने में कामदेव
से भी सुकुमार नन्द के कुमार ( श्रीकृष्ण ), चतुराई से, अवसर