पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२६४

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काछन कछोटी सिर छोटे-छोटे काकपक्ष,
पांच ही बरस के सु युद्ध अभिलाख्यो ई।
नील नल, अंगद सहित जामवंत हनु---
मंत से अनन्त जिन नीरनिधि नाख्यो ई।
'केशौदास' दीप-दीप भूपनि स्यों रघुकुल,
कुश लव जीति के विजय रस चाख्यो ई॥११॥

जिनके साथ मे कोई सहायक न था और न जिनके हाथो मे कोई हथियार था उन्होने श्रीरामचन्द्र के यज्ञ के घोड़े को पकड़ कर रख ही लिया। जो अभी लंगोटी ही पहने थे, जिनके घुंघराले बाल (या जुलफी) अभी छोटे-छोटे थे, और जो अभी पाँच ही वर्ष के थे, उन्होने युद्ध करने की इच्छा कर ही ली। नील, नल, अगद, जामवत तथा हनुमान् जैसे वीर जिन्होने समुद्र को लाघ ही डाला था, उनके साथ ही (केशव दास कहते हैं) अन्य द्वीप द्वीपान्तरो के राजाओ के सहित श्रीरामचन्द्र जी को जीत कर, कुश और लव ने विजय रस चख ही लिया।

[कुश लव श्रीरामचन्द्र जी के सहायक न होकर बाधक हुए, अत: विपरीतालंकार है]

अथ रूपक

दोहा

उपमाहीं के रूपसों, मिल्यो बरणिये रूप।
ताही सों सब कहते है, केशव रूपक रूप॥१२॥

केशवदास कहते है कि जहाँ पर उपमा से ही मिला हुआ उपमान का रूप वर्णित किया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार कहते हैं।