पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२१

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(३०३)

४---एकाक्षर

दोहा

गो० गो० गं० गो० गी० अ० आ०, श्री० ध्री० ही० भी० भा० न।
भू० वि०ष०स्व० ज्ञा०द्यौ०,हि०हा०,नौ० ना०सं०,भं०मा०न०॥१०॥


सूर्य, चन्द्र, श्रीगणेश, गाय, सरस्वती, श्रीविष्णु, श्रीब्रह्मा और श्री लक्ष्मीजी को धारण कर लज्जा और भय न कर। इससे पृथ्वी और आकाश तेरे लिए अपने समझ पड़ेगे। तेरा हृदय प्रकाशित होगा। तुझे नया कष्ट न मिलेगा तथा तू प्रकाशित होगा और तेरी मृत्यु न होगी।

५---द्वयाक्षर शब्द रचना

दोहा

रमा, उमा, बानी, सदा, हरि, हर, विधि सँग वाम।
क्षमा, दया, सीता, सती, कीनी रामा० राम॥११॥

श्री लक्ष्मी जी, श्री पार्वती जी और सरस्वती जी सदा श्री विष्णु, श्री शंकर जी तथा श्री ब्रह्मा जी के साथ रहने वाली है परन्तु श्रीरामजी की पत्नी सती साध्वी सीता जी ही क्षमा और दया से युक्त है।

६---त्रयाक्षर शब्द रचना

दोहा

श्रीधर, भूधर, केसिहा, केशव, जगत प्रमाण।
माधव, राघव, कंसहा, पूरन, पुरुष, पुराण॥११॥

'केशवदास' कहते है कि श्रीकृष्ण की (शोभा) को धारण करने वाले, गोवर्द्धन पर्वत धारी, केशी को मारने वाले, माधव, राघव, कंश को मारने वाले तथा पूर्ण पुरुष है, इसका जगत साक्षी है।