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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३३६

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(३१८)

उदाहरण

छप्पय

को शुभ अक्षर, कौन युवति योधन बस कीनी।
विजय सिद्धि संग्रास, राम कहँ कौनों दीनी॥
कंसराज यदुबंस, बसत कैसे केशव पुर।
बटसो करिये कहा, नाम जानहु अपने उर॥
कहि कौन जननि जगजगत की, कमल नयन कंचन बरणि।
सुनि वेद पुराणन में कही, सनकादिक 'शंकरतरुणि'॥५५॥

शुभ अक्षर कौन है? योद्धो ने किस युवती को अपने वश में कर लिया है? श्रीरामचन्द्र को युद्ध में विजय प्राप्त किसने कराई? 'केशव' कहते है कि कंस के राज्य में यदुवंश कैसे निवास करता था? वट से क्या कहते है? इसे अपने हृदय में विचारो। कमल जैसे नेत्रवाली तथा कंचन जैसे रंग की समस्त जग की माता कौन कहलाती है? इन सभी प्रश्नो का उत्तर सनकादि ने, वेद और पुराणो के अनुसार 'तरुनि' वाक्य में दे दिया है। [इसमें अंतिम उत्तर 'शंकर तरुनि' के सबसे पहले अक्षर 'श' को लीजिए। यह पहले प्रश्न का उत्तर हुआ। फिर उसमें आगे का अक्षर 'क' जोड़िए यह 'शंक' दूसरे प्रश्न का उत्तर हुआ। इसी तरह से शंकर, शंकरत, 'शंक तरु' और 'शंकर तरुणि' उत्तर बनते है।]

उदाहरण-२

कवित्त

कोल काहि धरी धरि धीरज धरमहित,
मारयो केहि सूत बलदेव जोर जब सों।
जॉचै कहा जग जगदीश सों 'केशवदास',
गायो कौने रामायण गीत शुभरय सों।