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इसी क्रम से उलटने पर जो अर्थ आता है, उसे 'समस्त' समझना
चाहिए।
उदाहरण
कवित्त
के है रस, कैसे लई लङ्क, काहे पति पट,
होत, 'केशोदास' कौन शोभिये सभा मे जन ।
भोगनि को भोगनत, कौने गने भागवत,
जीते का यतीन, कौन है प्रनाम के वरन ।
कौन करी सभा, कौन युवती अजीत जग,
गावै कहा गुणी, कहा भरे हैं मुजंग गन ।
कापै मोहै पशु, कहा करै तपी तप इन्द्र,
जीत जी वसत कहाँ 'नवरङ्गराय मन' ।।८।।
रस कितने हैं ? लका कैसे ली? पीला वस्त्र कैसे होता है ? 'केशव
दास' कहते है कौन मनुष्य सभा मे सुशोभित होता है? कौन
भोगो को भोगता है ? भागवत मे किसको गिनते हैं ? यतियो ने किसे
जीता है ? 'प्रणाम' के कौन अक्षर है ? सभा किसने बनाई ? कौन
स्त्री अजीत है? गुणी लोग क्या गाते है ? सांपो मे क्या भरा है ?
पशु ( हिरन) किस पर मोहते है ? तपस्वी कहां पर तप करते हैं ?
तथा इन्द्रजीत जी कहाँ बसते है। इन सभी प्रश्नो का उत्त र 'नवरग-
राय मन' निकलता है। अपर दी हुई परिभाषा के अनुसार पहले
'व्यस्त' और फिर समस्त उत्तरो का अर्थ निकालिए। पहले दो अक्षर
'नव' लीजिए । यह पहले प्रश्न का उत्तर हुआ । फिर पिछला अक्षर
'न' छोड़ दीजिए और आगे का अक्षर र मिला दीजिए वो 'वर' बना
यह दूसरे प्रश्न का उत्तर हुआ। इसी क्रम से 'रंग' 'गर' अर्थात् गम्भीर,
"राया, 'यम' और 'मन' उत्तर निकलते है पहले ७ प्रश्नो के
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३३८
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