पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३२०)

इसी क्रम से उलटने पर जो अर्थ आता है, उसे 'समस्त' समझना चाहिए।

उदाहरण

कवित्त

के है रस, कैसे लई लङ्क, काहे पति पट,
होत, 'केशोदास' कौन शोभिये सभा मे जन।
भोगनि को भोगवत, कौने गने भागवत,
जीते का यतीन, कौन है प्रनाम के वरन।
कौन करी सभा, कौन युवती अजीत जग,
गावै कहा गुणीं, कहा भरे हैं भुजंग गन।
कापै मोहै पशु, कहा करै तपी तप इन्द्र,
जीत जी वसंत कहाँ 'नवरङ्गराय मन'॥५८॥

रस कितने हैं? लंका कैसे ली? पीला वस्त्र कैसे होता है? 'केशव दास' कहते है कौन मनुष्य सभा में सुशोभित होता है? कौन भोगो को भोगता है? भागवत में किसको गिनते हैं? यतियो ने कि जीता है? 'प्रणाम' के कौन अक्षर है? सभा किसने बनाई? कौन स्त्री अजीत है? गुणी लोग क्या गाते है? सांपो में क्या भरा है? पशु ( हिरन) किस पर मोहते है? तपस्वी कहां पर तप करते हैं? तथा इन्द्रजीत जी कहाँ बसते है। 'इन सभी प्रश्नो का उत्तर 'नवरंगराय मन' निकलता है। ऊपर दी हुई परिभाषा के अनुसार पहले 'व्यस्त' और फिर समस्त उत्तरो का अर्थ निकालिए। पहले दो अक्षर 'नव' लीजिए। यह पहले प्रश्न का उत्तर हुआ। फिर पिछला अक्षर 'न' छोड़ दीजिए और आगे का अक्षर 'र' मिला दीजिए तो 'वर' बना यह दूसरे प्रश्न का उत्तर हुआ। इसी क्रम से 'रंग' 'गर' अर्थात् गम्भीर, 'राय', 'यम' और 'मन' उत्तर निकलते है पहले ७ प्रश्नो के