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२०-मधुरवर्णन
दोहा
मधुर प्रियाधर, सोमकर, माखन, दाख, समान ।
बालक बात तोतरी, कविकुल उति प्रमान ॥४७॥
महुवा, मिश्री, दूध, घृत, अति सिङ्गार रस मिष्ट ।
ऊख, महूख, पियूख, गनि, केशव सांचे इष्ट ॥४८।।
केशव कहते है कि प्रिया के ओठ, चन्द्रमा की किरणें, मक्खन,
दाख ( किसमिस ), बालक की तोतली वाणी, कवियो की उक्तियाँ,
महुवा, मिश्री दूध, घी, शृगार रस, ऊख, शहद और अमृत मधुर माने
जाते है।
उदाहरण
सवैया
खारिक खात न, माखन, दाख न दाडिमहूं सह मेटि इठाई।
केशव ऊख मयूखहु दूखत, आईही तोपहँ छाडि जिठाई ॥
तो रदनच्छदको रसरंचक, चाखिगये करि केहूं ढिठाई।
तादिनते उन राखी उठाइ समेत सुधा बसुधाकी मिठाई ॥४॥
'केशवदास' कहते है कि जिस दिन से वह तेरे ओठो का धृष्टता-
पूर्वक थोडा सा रस चख गये है। उस दिन से वह न तो छुहारा खाते
है, न मक्खन खाते हैं, और न दान । अनार की मित्रता भी उन्होने
छोड दी है अर्थात् अनार भी रुचिकर नहीं होता। वह ऊख और महूख
की भी निन्दा करते हैं। यह बात मै तुझसे अपने जेठेपन का ध्यान
छोडकर कहने आई है।
२१-अबल वर्णन
दोहा
पंगु, गुंग, रोगी, वणिक, भीत, भूखयुत, जानि ।
अध अनाथ अजादि शिशु, अबला; अबल बखानि ॥५०॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/९०
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