पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/२३

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पुरुषों को पांचालवासियों के समान थी। यहाँ की प्रवृत्ति का नाम ‘आवन्ती’ हुआ ।

अवन्ती से सब लोग दक्षिण दिशा को गये--जहाँ मलय-मेकल-कुन्तल-केरल-पालमञ्जर-महाराष्ट्र-गंग-कलिंग इत्यादि देश हैं। वहाँ की स्त्रियों की वेषभूषा का वर्णन ऋषियों ने यों किया है––

आमूलतो वलितकुन्तलधारचूड--

श्चूर्णालकप्रचयलांञ्छितभालभागः ।

कक्षानिवेशनिविडोकृतनीविरेष

वेषश्चिरं जयति केरलकामिनीनाम् ॥

[बाँधे केश सुवेश नित बुकनी रंजित भाल ।

नीवी कच्छा में कसी, विलसित दक्षिणबाल ॥]

यहाँ की प्रवृत्ति का ‘दाक्षिणात्य वृत्ति’ नाम हुआ । साहित्यवधू ने यहाँ जिस नत्यगीतकला का उपयोग किया उसका नाम ‘कैशिकी’ हुआ । बोलचाल की रीति का नाम ‘वैदर्भी’ हुआ जिसमें अनुप्रास होते हैं, समास नहीं होता ।

‘प्रवृत्ति’ कहते हैं वेषभूषा को, ‘वृत्ति’ कहते हैं नृत्यगीतादिकला- विलास को––और ‘रीति’ कहते हैं बोलचाल के क्रम को। देश तो अनन्त हैं परन्तु इन्हीं चार विभागों से सभों को विभक्त किया है-प्राच्य-पांचाल--अवन्ती--दाक्षिणात्य । इन सभों का सामान्य नाम है ‘चक्र-वतिक्षेत्र’ जो दक्षिण समुद्र से लेकर उत्तर की ओर १,००० योजन (४,००० कोस) तक प्रसरित है। इस देश में जैसी वेशभूषा कह आये हैं वैसी ही होनी चाहिये । इसी के अन्तर्गत एक विदर्भ देश है जहाँ कामदेव का क्रीडा़स्थान वत्सगुल्म नामक नगर है। उसी नगर में पहुंचकर काव्यपुरुष ने साहित्यवधू के साथ विवाह किया और लौटकर हिमालय आये जहाँ गौरी और सरस्वती उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं। इन्होंने वधू-वर को वर दिया कि सदा कवियों के मानस में निवास करें ।

यही काव्यपुरुष की कथा है ।

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