पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१०८

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क्रांतिकारिणी
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उसके मन में यह हो रहा था कि स्टेशन पाए, और वह उतरकर भागे।

मैं अपनी हरकत पर लज्जित हुआ। वह थोड़ी देर में स्थिर हुई, और कुछ रोष-भरी दृष्टि से मेरी ओर देखने लगी। मैंने भंपकर जेब से एक अंग्रेजी दैनिक निकाला और पढ़ने लगा।

हठात् अंग्रेजी के संक्षिप्त और तीखे, किन्तु मृदुल शब्द कान में पड़े। उसने पूछा था:

'कहां जा रहे हैं?'

शुद्ध अंग्रेजी में उच्चारण सुनकर मैंने अचकचाकर उसकी ओर देखा, वह तीव्र दृष्टि से मेरी ओर ताक रही थी। वह दृष्टि एक बार बलात् मेरे हृदय में घुस गई। मैं कांप गया-क्यों? यह नहीं कह सकता। मैंने कुछ शंकित स्वर में कहा-मेरठ, आप कहां जाएंगी?

मानो मेरा प्रश्न उसने सुना ही नहीं। उसने फिर पूछा-आप वहीं रहते हैं?

अपने प्रश्न का उत्तर न पाना मुझे अच्छा नहीं लगा, पर मैंने संयम से कहा नहीं, मैं दिल्ली रहता हूं। वहां मैं एक मित्र के यहां शादी में जा रहा हूं।

मैंने देखा, इस उत्तर से उसे कुछ संतोष हुआ, और उसके चेहरे का भाव बदल गया। इस बार उसने कोमल तथा विनम्र स्वर में पूछा-याप दिल्ली में क्या काम करते हैं?

'मैं वकील हूं।'

यह उत्तर सुनकर वह कुछ देर चुप रही, फिर उसने कहा-क्षमा कीजिए, मैं वकीलों से घृणा करती हूं, परन्तु आप एक सज्जन आदमी प्रतीत होते हैं। उसकी इस दबंगता पर मैं हैरान हो गया। पर मैं उसकी बात का बुरा न मान सका। स्वीकार करता हूं, एक प्रकार से उसका रुझाब मुझपर छा गया, मैंने अत्यन्त नम्रता से पूछा:

'क्षमा कीजिए, यदि हर्ज न हो तो आप अपना परिचय दीजिए।'

'मेरा परिचय कुछ नहीं है, पर आप चाहें तो मुझे कुछ सहायता दे सकते हैं।'

मैं कुछ सोच ही न सका। मैंने उतावली से कहा--बहुत खुशी से। मैं यदि कुछ आपकी सहायता कर सका, तो मुझे आनन्द होगा।

उसने बिना ही भूमिका के कहा: