बार मुलाकात करके उनसे कुछ पूछना है।
क्षण-भर के लिए मेरे शरीर में खून की गति रुक गई। पर वकीली दिमाग ने समय पर काम दिया।
मैंने नकली आश्चर्य प्रदर्शन करके कहा:
'उनसे आपको क्या पूछना है?'
'यह मैं आपको नहीं बता सकता।'
'यह कैसे सम्भव हो सकता है कि आप पर्देनशीन महिला से इस तरह बातचीत कर सकें!'
'बातचीत तो जनाब हो चुकी है। मैं जानता हूं कि वे पर्दे की कायल नहीं।'
मैंने और भी आश्चर्य का भाव चेहरे पर लाकर कहा-आप कब उनसे बातचीत कर चुके हैं?
'क्या आप भूल गए, उसी दिन रेल में।'
'मैं नहीं समझता, आप किस दिन की बात कह रहे हैं?'
दारोगाजी ज़ोर से हंस पड़े। उन्होंने दाढ़ी पर हाथ फेरकर कहा-यह तो अभी मालूम हो जाएगा।
मैंने खूब गुस्से का भाव चेहरे पर लाकर कहा--किस तरह?
'पाप कृपा कर उन्हें ज़रा बुलवा दीजिए।'
मैंने क्षण-भर सोचने का बहाना किया, फिर मैंने नौकर को बुलाकर कहा जाओ, ज़रा बीबीजी को बुला लायो। क्षण-भर ही में रेवती सशरीर सामने आ खड़ी हुई।
दारोगा को काटो तो खून नहीं! मैंने उनकी तरफ न देखकर रेवती से पूछा रेवती, कभी तूने इनसे बातचीत की थी?
'कभी नहीं।'
दारोगाजी ने घबराकर कहा-ये वे नहीं हैं साहब।
मैंने रेवती को जाने का इशारा करके कहा---जनाब, मैं आपपर हतक का दावा करूंगा!
सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब अब तक चुपचाप बैठे थे। बोले--आपकी कुल कितनी बहिनें हैं?'
मैंने कहा-एक यही है।