पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१३०

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ग्यारहवीं मई
१२९
 


इस प्रकार मेगज़ीन की रक्षा का यथासम्भव प्रबन्ध करके हिंदुस्तानी अमलों को हथियार बांटे गए, जो उन्होंने अनिच्छा से लिए। इसके बाद कण्डक्टर एकलो तथा साजण्ट स्टुअर्ट ने एक शिताबा लगाया। और हुक्म दिया गया कि जब लेफ्टिनेण्ट के हुक्म से कण्डक्टर युमली अपनी टोपी सिर से उठाकर इशारा करें, फौरन शिताबे में आग दे दी जाए।

यह प्रबन्ध हो ही रहा था कि किले से एक गारद ने आकर कहा-शाहेदेहली का हुक्म है कि फौरन मेगज़ीन उनके हवाले कर दी जाए। परन्तु, इस हुक्म की तालीम नहीं की गई, न जवाव दिया गया। इसी बीच में लेफ्टिनेण्ट को इत्तला मिली कि मेगज़ीन की दीवारों पर चढ़ने के लिए किले से जीने आ रहे हैं।

कुछ देर में जीने आ गए और टिड्डीदल की तरह विद्रोही मेगज़ीन में घुस आए। भीतर के सिपाही भी उनमें मिल गए। जब तक गोला-बारूद रहा लड़ाई होती रही। लाशों के ढेर लग गए पर विद्रोही बहुत थे।

लेफ्टिनेण्ट रेंज ने रक्षा के सब उपाय कर डाले, सब तोपें चार-चार बार सर की गईं। विद्रोही सावन-भादों की बौछार की तरह गोलियां बरसा रहे थे। जब गोला-बारूद खत्म हो गया और बचने की कोई आशा न रही तो लेफ्टिनेण्ट ड्यूली ने मेगज़ीन को उड़ाने का इशारा किया। उसकी तामील तुरन्त कर दी गई। तमाम शिताबों में आग लगा दी गई। ऐसा धड़ाका हुआ कि आसपास के मकान ढह गए। जो दीवारें टूट गई थीं उनके रास्ते बचे-खुचे आदमी जमुना की ओर भागे। लेफ्टिनेण्ट रेंज और कण्डक्टर ड्यूली जीवित बच निकले। पर ये दोनों बुरी तरह झुलस गए थे। उनका सारा माल-असबाब, उनकी स्त्री और तीन बच्चे इसमें खत्म हो चुके थे और उनका एक हाथ भी बिलकुल निकम्मा हो गया था। जमुना-पार इन्हें विद्रोहियों ने घेर लिया। कई घाव आए, उनके सब कपड़े उतार लिए गए। ये भूखे-प्यासे किसी तरह बारह दिन भटकते-फिरते मेरठ पहुंच पाए।

लूट-पाट और खून-खरावी का बाजार गर्म था। विद्रोही सिपाहियों के साथ बहुत-से शहर के लुच्चे-गुण्डे मिल गए थे। पहले उन्होंने गिरजाघर और अंग्रेजों की कोठियों को लूटकर जला डाला, औरत-बच्चे और मर्द जो जहां मिले, कत्ल कर डाले गए। कुछ अंग्रेज़ स्त्री-पुरुष किसी तरह जान बचाकर छावनी में इकट्ठे हो गए थे। कैसे जान बचावें, भागकर कहां जाएं, यह सूझ नहीं पड़ता था। अनेक