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मृत्यु-चुम्बन
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भी व्यक्ति जीवित लौटता नहीं था।

असुरपुरी एक कलापूर्ण स्वच्छ गांव था। घर सब गारे-पत्थर के थे। उनपर गोल बांधकर छप्पर छाए हुए थे। सड़कें चौड़ी और साफ थीं। पशु पुष्ट और उनके गवांठ कलापूर्ण थे। असुर-तरुणियां सुरमे के रंग की चमकती देह पर लाल मूंगा तथा हिमधवल मोतियों की माला धारण किए, चर्म के लहंगे पहने, कमर में स्वर्ण की करधनी और हाथों में स्वर्ण के मोटे-मोटे कड़े पहने कौतूहल से इन बंदियों का आगमन देख रही थीं। रूपसी कुण्डनी सम्पूर्ण असुर-बालाओं की स्पर्धा.की वस्तु हो रही थी। वह निर्भय साहसपूर्वक आगे बढ़ रही थी। सोम ने कहा-मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि इस असुरपुरी में तुम निर्भय और विनोदी भाव से प्रवेश कर रही हो।

'भय क्या है?'

'यह तो अभी पता लग जाएगा जब शम्बर आज रात को हमें देवता पर बलि देगा।'

जब वे असुरराज के सामने पहुंचे, तो सोमप्रभ ने आसुरी भाषा में असुर का अभिनन्दन करते हुए कहा कि मैं प्रतापी मगध-सम्राट् बिम्बसार की ओर से मैत्रीस्थापन का प्रस्ताव लाया हूं।

शम्बर असुर अपनी विशाल गुहा में एक व्याघ्रचर्म पर बैठा था। उसका शरीर बहुत विशाल था। रंग काला था। अवस्था का पता नहीं चलता था। सिर खुला था। बाल लाल और धुंघराले थे। भुजबन्द पर स्वर्णमण्डित सुअर के दांत बंधे थे। सिर पर स्वर्ण-पट्ट में जड़े किसी पशु के सींग थे। मस्तक पर रक्त चन्दन का लेप था।

सोमप्रभ ने असुरराज का अभिनन्दन किया।

असुरराज ने उसकी ओर देखकर कहा:

'गन्धर्व है कि मनुष्य?'

'मनुष्य'

'कहां का?'

'मगध का।'

'मगध के सैनिप बिम्बसार को मैं जानता हूं, परन्तु वह मेरा मित्र नहीं है। तू मेरे राज्य की सीमा में क्यों घुसा? अक्षम अपराध है, और उसका दण्ड मृत्यु है।'