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मृत्यु-चुम्बन
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का आदेश दीजिए।'

'पिएं वे सब।' उसने हंसते-हंसते कहा। और एक घड़ा कुण्डनी ने शम्बर के मुंह से लगा दिया।

कुछ असुरों ने कहा—भोज, भोज, अब भोज होगा।

शम्बर के पैर डगमगा रहे थे। उसने हिचकी लेते-लेते कहा-मेरी इस मानुषी-सुन्दरी के सम्मान में सब कोई खूब खाओ, पियो। अनुमति देता हूं खूब खामो-पियो।—वह कुण्डनी पर झुक गया।

असुरों की हालत अब बहुत खराब हो रही थी। उनकी नाक तक शराब ठुस गई थी। उनके पैर सीधे न पड़ते थे। अब उन्होंने भैसे का मांस हबर-हबर करके खाना प्रारम्भ किया।

कुण्डनी ने कहा—भाण्डों में अभी सुरा बहुत है, सोम, यह सब इन नीच असुरों के पेट में उंडेल दो।-सोमप्रभ असुरों को और कुण्डनी शम्बर को ढालढाल कर पिलाने लगी।

शम्बर ने कहा—मानुषी, अब तू नाच।

सोम ने कुण्डनी का संकेत पाकर कहा—महान शम्बर ने जो मागध विम्बसार की मैत्री स्वीकार कर ली है, क्या उसके लिए सब कोई एक-एक पात्र न पीए?'

'क्यों नहीं, पर बिम्बसार ऐसी सौ तरुणियां दे।'

इसी समय कुण्डनी ने भाव-नृत्य प्रारम्भ किया, और मदिरा से उत्तप्त असुर बेकाबू हो, असंयत भाव से कुण्डनी को अंकपाश में पकड़ने को लपके।

यह देख कुण्डनी का संकेत पा सोमप्रभ ने कहा-सब कोई सुने। यह मागध सून्दरी विद्युत्प्रभ है। जो कोई इसका आलिंगन-चुम्बन करेगा-वही तत्काल मृत्यु को प्राप्त होगा।

असुरों में अब सोचने-विचारने की सामर्थ्य नहीं रही थी-चुम्बन करो, चुम्बन करो।—सब चिल्लाने लगे।

शम्बर ने हाथ का मद्यपात्र फेंककर हकलाते हुए कहा-सब कोई इस मानुषी का चुम्बन करे।

कुण्डनी नृत्य कर रही थी। अब उसने एक छाटी-सी थैली वस्त्र से निकालकर उसमें से महानाग को निकाला, और कण्ठ में पहन लिया। यह देख असुर