पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१५०

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वासवदत्ता

वासवदत्ता महाराज उदयन की कला पर आसक्त होकर उनसे नृत्य-संगीत सीखने लगी। दोनों में असीम प्रेम उत्पन्न हो गया। और अन्त में विवाह भी। इस कहानी में उदयन और वासवदत्ता की तत्कालीन भावनाओं का श्रेष्ठ चित्रण है।

एक समय कौशाम्बी के राजकुमार उदयन शिकार खेलने वन में गए। वहां जाकर उन्होंने देखा, एक मदारी एक बहुत बड़े और सून्दर सर्प को ज़बर्दस्ती पकड़े लिए जा रहा है। सर्प उससे छुटने को छटपटा रहा है। राजकुमार उदयन को सर्प पर बड़ी दया आई और उन्होंने पुकारकर मदारी से कहा—अरे हमारे कहने से इस सर्प को छोड़ दे।

इसपर मदारी ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक राजा से कहा—मालिक, यह तो मेरी जीविका है। मैं बड़ा गरीब आदमी हूं। सदैव सर्पो का खेल दिखा-दिखाकर पेट भरता हूं। पुराने सब सर्प मर गए, अब बहुत ढूंढ़ने पर इस वन में मन्त्र और ओषधियों के बल से मैंने यह सर्प पकड़ पाया है। भला इसे मैं कैसे छोड़ दूं।

इसपर राजकुमार ने हंसते हुए अपने हाथों के सोने के कड़े उतारकर उस मदारी को दे दिए। और सर्प को छुड़वा दिया।

मदारी सोने के कड़े ले, प्रसन्न हो, राजकुमार को प्रणाम कर उनका जयजयकार करता हुआ चला गया।

उसके चले जाने पर सर्प एक वीणाधारी दिव्य पुरुष हो गया, और राजकुमार के निकट आकर बोला—मैं वासुकि नाग का बड़ा भाई वसुनेमि नाग हूं। तुमने मुझे छुड़ाया है और मेरी रक्षा की है, इसलिए मैं तुम्हें मंजुघोषा नाम की यह वीणा देता हूं। यह दिव्य वीणा है। मैं तुम्हें ऐसी विधि बताता हूं कि तुम इसे एक ही काल में तीन ग्रामों में बजा सकोगे। जब यह वीणा तीन ग्रामों में एक ही काल में बजाई जाएगी तो विश्व के सब चराचर उसकी गत सुनकर विमोहित हो जाएंगे।