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वासवदत्ता
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कहा—मैं नहीं जानती, उदयन चाहे जो भी हो, उसे यहां आकर वीणा-वादन सिखाना ही होगा।

इसपर चण्डमहासेन बड़े चिन्तित हुए। अन्ततः पुत्री के प्रेम के आगे उन्होंने हार मान ली और एक सन्देशवाहक को यह सन्देश लेकर उदयन के पास भेजा कि हमारी पुत्री वासवदत्ता तुमसे वीणावादन और नृत्य सीखना चाहती है,सोजो तुम्हें हमपर स्नेह हो तो यहां आकर उसे सिखाओ।

दूत ने कौशाम्बी पहुंचकर भरी सभा में उदयन को यह संदेश दिया। संदेश सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। परन्तु राजाने दूत का अच्छी तरह सत्कार किया, और विश्राम करने की आज्ञा दी।

फिर अपने मंत्रियों से सम्मति ले चण्डमहासेन के पास दूत द्वारा यह संदेश भेजा कि यदि आपकी पुत्री हमसे गानविद्या सीखना चाहती है तो उसे यहां भेज दीजिए। यह सुनकर चण्डमहासेन ने उदयन को पकड़ने की एक युक्ति रची। उन्होंने कारीगरों से सलाह करके एक बड़ा भारी कल का हाथी बनवाया और उसके भीतर चालीस योद्धा छिपा दिए। फिर वह हाथी उसी वन में छुड़वा दिया जिसमें राजा उदयन बहुधा शिकार को जाया करता था।

राजा के गोहन्दों ने राजा को सूचना दी कि वन में हम लोगों ने एक हाथी ऐसा देखा है कि जैसा इस संसार-भर में कहीं नहीं है। वह इतना बड़ा है जैसे चलता-फिरता विन्ध्याचल हो। राजा यह सुनकर प्रसन्न हो गया। गोहन्दों को इनाम दिया और भोर होते ही विन्ध्याचल के वन की ओर उसने दलबलसहित प्रस्थान किया।

वन में पहुंचकर उसने सेना को तो दूर छोड़ा और वीणा हाथ में ले गोहन्दों के साथ वन में प्रवेश किया। हाथी को देखते ही राजा वीणा बजाता हुआ उसके निकट चला गया। वीणा सुनकर मस्त हुआ-सा वह हाथी दोनों कान उठा-- कर राजा के निकट आकर फिर एक ओर जाने लगा। राजा उसके पीछे-पीछे बहुत दूर निकल गया। इसी समय अवसर पाकर हाथी के पेट से बहुत-से सशस्त्र सैनिक निकल आए और उन्होंने राजा को चारों ओर से घेर लिया। यह देख राजा क्रुद्ध हो चक्कू निकालकर उनसे लड़ने लगा, पर उन लोगों ने शस्त्ररहित राजा को शीघ्र ही बेबस करके पकड़ लिया और उसे लेकर शीघ्रता से अंवती की ओर प्रस्थान किया।