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वासवदत्ता
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साथी वसन्तक का भी उसने रूप बदल दिया, उसका पेट ऐसा फूला हुआ बना दिया कि उसकी सब नसें उसपर दिखाई देने लगी और उसका मुंह बिगाड़कर बड़ेबड़े दांत बना दिए। अब यौगन्धरायण वसन्तक को नचाता-गवाता नगर के आबालवृद्धों में फिरा और राजमहल की ड्योढ़ियों पर जा पहुंचा। वहां उसने अपने खेलतमाशों से रानियों-दासियों आदि को खूब प्रसन्न कर लिया। उसकी चर्चा वासवदत्ता ने भी सुनी और दासी को भेजकर उन्हें बुलवाया। वहां बन्दी हुए राजा को देखकर उसका चित्त बहुत दुःखी हुआ। उसने संकेत से राजा को अपना परिचय भी दे दिया। राजा भी अपने मंत्री को पहचान गया, पर यह बात राजकुमारी और उसकी सखियां न भांप सकीं।

इसके बाद संकेत पाकर वसन्तक रोने लगा। राजा ने कहा:-हे ब्राह्मण, रोओ मत, तुम मेरे पास रहो, मैं तुम्हारा सब रोग दूर कर दूंगा।—वसन्तक ने कहा—यह आपकी बड़ी कृपा है।—वसन्तक ने ऐसा स्नेह जताया था कि उसे देखकर राजा को हंसी आ गई। इसपर राजकुमारी और सखियां भी हंसने लगीं। यह देख वसन्तक भी हंस दिया। वासवदत्ता ने उससे पूछा कि तू क्या काम करना जानता है। उसने कहा—मैं बहुत-सी कथा-कहानियां कहना जानता हूं।—इसपर प्रसन्न होकर राजकुमारी ने उसे अपने पास रख लिया।

अब राजा और वासवदत्ता में चुपचाप सलाह होने लगी। वासवदत्ता राजा के साथ भागने को राजी हो गई। वसन्तक ने कहा—राजा चण्ड आपको अपनी कन्या देना चाहता है, परन्तु अपनी अकड़ कायम रखने को उसने आपको पकड़ा है। अब आप भी उसकी कन्या का हरण करके अपमान का बदला लीजिए।

चण्डद्योत राजा ने अपनी पुत्री वासवदत्ता को एक हथिनी दी थी, उसका नाम भद्रावती था। उस हथिनी की चाल की बराबरी राजा का नाड़ागिरि हाथी ही कर सकता था। पर वह हथिनी से नहीं लड़ता था। हथिनी का महावत आषाढ़क था। उसे यौगंधरायण ने सोना देकर मिला लिया और राजा को सन्देश दिया कि मैं आपके मित्र राजा पुलिन्दक के पास पहले ही से जाकर मार्ग की रक्षा का प्रबन्ध करता हूं, आप समय देखकर हथिनी पर सवार हो कुमारीसहित भाग आएं।

इसी योजनानुसार देवताओं की पूजा के बहाने हाथियों के प्रधान को मद्य से मतवाला कर, हथिनी पर सवार हो राजा राजकुमारी, वसन्तक तथा कुमारी की सखी कांचनमाला के साथ वीणा और शस्त्र ले रात्रि के समय भाग चले। मत