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डाक्टर साहब की घड़ी
 

उन्होंने पुलिस में भी खबर करने की सलाह दी, नौकर-चाकरों की भी छानबीन की।

परन्तु मेरा सिर्फ एक ही नौकर था। वह बहुत पुराना और विश्वासी नौकर था। गत पन्द्रह वर्षों से वह मेरे पास था। तब से एक बार भी उसने शिकायत का मौका नहीं दिया। फिर इतनी असाधारण चोरी वह करने का साहस कैसे कर सकता था! पर सूबेदार साहब उससे बराबर जिरह कर रहे थे और वह बराबर मेज़ पर उंगली टेक-टेककर कह रहा था कि यहां उसने झाड़-पोंछकर घड़ी अपने हाथ से सुबह रखी है। मैं आंखें छत पर लगाए सोच रहा था कि घड़ी आखिर गई तो कहां गई।

एकाएक सूबेदार साहब का हाथ उनकी पगड़ी पर जा पड़ा; उसकी एक लट ढीली-सी हो गई थी, वे उसीको शायद ठीक करने लगे थे। परन्तु कैसे आश्चर्य की बात है, पगड़ी के छूते ही वही मधुर तान पगड़ी में से निकलने लगी! पहले तो मैं कुछ समझ ही न पाया। नौकर भी हक्का-बक्का होकर इधर-उधर देखने लगा। सूबेदार साहब के चेहरे पर घबराहट के चिह्न साफदीख पड़ने लगे। क्षणभर बाद ही नौकर ने चीते की भांति छलांग मारकर सूबेदार साहब के सिर पर से पगड़ी उतार ली और उससे घड़ी निकालकर हथेली पर रखकर कहा-यह रही हुजूर आपकी घड़ी! अब आप ही इंसाफ कीजिए कि चोर कौन है?-उसके चेहरे की नसें उत्साह से उमड़ आई थीं और आंखें आग बरसा रही थीं। वह जैसे सूबेदार साहब को निगल जाने के लिए मेरी आज्ञा मांग रहा था। सब माजरा मैं भी समझ गया। सूबेदार साहब का चेहरा सफेद मिट्टी की माफिक हो गया था और वे मुर्दे की भांति आंखें फाड़-फाड़कर मेरी तरफ देख रहे थे। कुछ ही क्षणों में मैं स्थिर हो गया। मैंने लपककर खूटी से चाबुक उतारा और एकाएक पांचसात नौकर की पीठ पर जमा दिए। घड़ी उसके हाथ से मैंने छीन ली।

इसके बाद जितना कुछ स्वर बनाया जा सकता था, उतना क्रुद्ध होकर मैंने कहा: ___'सुअर, इतने दिन मेरे पास रहकर तूने अभी यह नहीं सीखा कि बड़े आदमी का अदब कैसे किया जा सकता है! क्या दुनिया में मेरे ही पास घड़ी है? सूबेदार साहब के पास वैसी पच्चीस घड़ी हो सकती हैं।'

नौकर गाली और मार खाकर चुपचाप मेरा मुंह ताकता रहा। मेरा यह व्यवहार उसके लिए सर्वथा अतकित था। वह एक शब्द भी नहीं बोला।