पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१७२

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प्यार

रूप की पिपासा जब प्यार में परिणत हो जाती है तो पुरुष अपनी प्रेमिका को पाने में क्या कुछ नहीं कर बैठता! वातावरण का चित्रण इसमें सुन्दर बन पड़ा है।

भादों की भरी रात। घना अन्धकार। दामोदर नद का सीमाहीन विस्तार। समस्त प्रकृति जड़, स्तब्ध। समीप ही एक राजोद्यान, विविध विटप-लता-वेष्टित। अन्धकार में अन्धकार। मेंढक, झींगुर और दूसरे जीवों का तीव्र स्वर दामोदर की उत्तुंग तरंग-राशि के हुंकार में मिला हुआ। जब-तब किसी विहंग का करुण क्रन्दन। निस्तब्धता का आर्तनाद। उद्यान की मध्य -भूमि में एक धवल प्रासाद, अन्धकार पर मुस्कान बिखेरता हुआ, गगनचुंबी किन्तु स्तब्ध। नीरव, निस्पन्द। अर्द्धरात्रि।

कक्ष में दीप जल रहा था। एक भद्र-वेशधारिणी वृद्धा बहुत-सी छोटी-बड़ी पोटलियां कभी खोलती, कभी बांधती, कभी आप ही आप बड़बड़ाती। वृद्धा के बाल श्वेत थे, शरीर गौर था, अांखें बड़ी-बड़ी थीं, वस्त्र सादा, निरलंकार शरीर कुछ स्थूल था। नाक जरा ऊंची, दृष्टि पैनी, और इस वेला चंचल। हवा के झोंके से दीप बुझने को हो जाता। उसकी लौ कांपती, और फिर स्थिर हो जाती। कुछ पोटलियां बंधी थीं, कुछ खुली पड़ी थीं। उनमें से किसीमें हीरे-मोती, मणि, माणिक, किसीमें स्वर्ण की मुहरें, किसीमें जड़ाऊ गहने, किसी में बहुमूल्य कम-खाब और जरबफ्त की पोशाकें। सभी कुछ सामने फैला पड़ा था। क्या साथ ले, क्या छोड़ दे, वृद्धा इसी असमंजस में बैठी, बड़बड़ाती हुई, कभी इस और कभी उस पोटली को बांध और खोल रही थी।

इसी समय एक कृशांगी बाला ने निःशब्द कक्ष में प्रवेश किया। वाला की आयु कोई इक्कीस बरस की थी। लम्बा, छरहरा कद, बड़ी-बड़ी उज्ज्वल आंखें। चांदी-सा चमकता श्वेत माथा, सीप-से दमकते हुए कपोल, जैसे हिलते ही रक्त टपक पड़ेगा, ऐसे होंठ। मलिनमुखी, मलिनवसना, करुणा की सजीव मूर्ति-