पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
प्यार
१७३
 

बांदी ने खीझकर कहा-यह सब दामोदर के पानी में फेंक दोगी, तो खाओगी क्या?

'हाथी से चींटी तक को जो देता है, वही दाता इस यतीम बेवा को भी देगा। न होगा तो राह-बाट में कहीं भूख से मर जाऊंगी। कुत्ते और सियार जिस्म को ठिकाने लगा देंगे।'

'तौबा, तौबा! यह क्या कलमा कहा बीबी?'

'तेरा इन कंकड़-पत्थरों पर मोह है, तोतू इन्हें ले जा। तुझे छुट्टी है।'

'खूब छुट्टी दी बीबी! छाती पर बोझ लेकर दामोदर के पानी में डूब मरने में इस बदबख्त बुढ़िया को कुछ तकलीफ न होगी।'

'नाराज़ हो गई मरजाना? राह में चोर-डाकुओं का क्या डर नहीं है? हम औरत जात किस-किस मुसीबत का सामना करेंगी? यह भी तो सोच।'

मरजाना की आंखों से टप से दो बूंद आंसू टपक पड़े।

रमणी ने देखा, न देखा। उसने कहा-अब देर न कर। तीन पहर रात बीत चुकी। दिन निकलने पर निकलना न हो सकेगा।

मरजाना ने झटपट सब हीरे-जवाहर कूड़े के ढेर की तरह एक गठरी में बांधे, और उसे बगल में दवाकर उठ खड़ी हुई। फिर एक दीर्घ निःश्वास फेंककर कहा चलो, बीबी। लेकिन बच्ची सो रही है। तुम यह गठरी लो। मैं बच्ची को लिए लेती हूं।

'नहीं, बच्ची को मैं ही ले चलती हूं।'

युवती ने बच्ची को गोद में ले लिया, काले वस्त्र से शरीर को अच्छी तरह लपेटा, एक नज़र उस भव्य अट्टालिका पर डाली, एक गहरी सांस छोड़ी, और चल दी। पीछे-पीछे मरजाना थी।

दोनों असहाय स्त्रियां प्रासाद की सीढ़ियां उतर, निविड़ अन्धकार में पौरी, द्वार, प्रांगन, दालान पार कर, बाग की रविशों पर चलती हुई, नदी-तीर की ओर बढ़ चलीं। सामने दामोदर का विशाल विस्तार है। हवा तीर की तरह चल रही है। हवा के एक झोंके ने बाला का वस्त्र उड़ा दिया। उसे अच्छी तरह शरीर से लपेट, और बच्ची को छाती से लगा, बाला ने कदम बढ़ाए। पीछे से आंचल खींचकर मरजाना ने कहा-बीबी, बड़ा डर लग लग रहा है। चलो, लौट चलें।