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प्यार
१७९
 

'जो हुआ वह शायद काफी न था। इसीसे उस संगदिल बादशाह ने मुझे गिरफ्तार करके आगरा ले जाने के लिए फौज़ भेजी है।' मेहर ने रुंधे कंठ से कहा।

'आगरा तो अब तुम्हें जाना ही होगा और उपाय ही क्या है?'

'मैं रास्ते में जहर खा लूंगी, पर उस संगदिल बादशाह का मुंह न देखूंगी!'

रानी कल्याणी सोचने लगीं। उनका मुंह भरे बादलों जैसा गम्भीर हो उठा। उन्होंने कहा-कौन जाने, तुम्हारी किस्मत में शायद हिन्दुस्तान की मलिका होना ही लिखा हो।

'आप इस कदर बेरहम न बनें महारानी। मैंने बड़ी बहिन समझकर इस बिपता में आपको मशविरा करने के लिए बुलाया है।'

'मेहर, मैं भाग्य में विश्वास करती हूं। जो कुछ हुआ, सब भाग्य का खेल था। अब आगे जो भाग्य में है, उसे कौन मेट सकता है? तुम जानती हो कि जन्नतनशीन बादशाह अकबर यदि ज़िद न पकड़ते, तो तुम शाहजादा सलीम की बीवी बनतीं, और आज हिन्दुस्तान की अधीश्वरी होतीं। लेकिन भाग्य बड़ा प्रबल है। उसने तुम्हारे लिए अब फिर भारत की अधीश्वरी होने का द्वार खोल दिया है। जाओ, आगरा जाओ। बर्दवान का यह पुराना महल तुम्हारे रहने के योग्य नहीं है।'

'नहीं महारानी, मैं उस संगदिल बादशाह की मर्जी का खिलौना नहीं बनूंगी। मेरे नेक, बहादुर खाविन्द के खून का दाग उसके दामन पर है।'

'मेहर, तुम्हें आगरा ले जाने के लिए फौज आई है। अब तुम क्या कर सकती हो?'

'रास्ते में जहर खा लूंगी। मेरी मिट्टी ही आगरा पहुंचेगी!'

'छि:, छिः! तुम अपनी ज़िन्दगी को इतनी बेकार चीज़ समझती हो? मरने से तुम्हारा सब कुछ नष्ट हो जाएगा और बादशाह का क्या बिगड़ेगा? "नहीं, मेहर, तुम्हें एक बार बादशाह के सामने जाना ही चाहिए।'

'तो मैं उसकी छाती में लात मारकर कहूंगी-तुम दीनो दुनिया के बादशाह हो, लेकिन मैं तुमसे नफरत करती हूं! तुमने एक हंसती-खेलती दुनिया को बरबाद किया है-एक मासूम, बेगुनाह औरत को बेवा बनाया है।'

'मेहर, लात खाकर भी अगर बादशाह इन चरणों को चूम ले, और इनका सदा के लिए दास बन जाए, तो?'