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प्यार
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बादशाह अकबर से भी शाहजादे की यह दशा छिपी न रही। वह एक दूरदर्शी बादशाह ही न था, नई जातीयता और नई भावनाओं को जन्म देने की आकांक्षा भी रखता था। भारत में हिन्दू-मुस्लिम संयुक्त जीवन का महत्त्व उसने समझ लिया था। सात सौ वर्ष से चले आते हुए धर्मविग्रह को उसने त्यागकर हिन्दुओं के सामने मैत्री का हाथ बढ़ाया था। वह चाहता था कि हिन्दू-मुसलमानों में रोटी-बेटी के सम्बन्ध जारी हों, और दोनों जातियां एक हो जाएं। इसीसे उसने सलीम का ब्याह एक राजपूत राजकुमारी से किया था। वह नहीं चाहता था कि शाहज़ादे की इस नवीन आयु में ही राजपूत बाला के प्रेम पर डाका पड़े। उसने राजपूत बाला को सलीम की प्रधान बेगम बना दिया था, और तय किया था कि उसी का पुत्र बादशाह होगा। उसका दृष्टिकोण शुद्ध राजनीतिक था। उसे सलीम के प्रेम को जानकर चिन्ता हुई। उसने तत्काल शेरअफगन के साथ मेहरुन्निसा की निस्वत पक्की करा दी।

यह खबर सलीम के लिए मौत से बढ़कर थी। उसने पिता के कदमों में गिरकर निवेदन किया कि वह मेहर की शादी उससे करा दे। सलीम ने कहा-बिना मेहर के मैं ज़िन्दा न रहूंगा। सलीम अकबर का बड़ी साध का बेटा था। फिर भी बादशाह ने उसकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी। उसने अपने वज़ीर अबुल-फज़ल से सलाह ली। मेहरुन्निसा का निकाह शेरअफगन के साथ कर दिया गया। और शेर-अफगन को बर्दवान का हाकिमे-आला बनाकर बंगाल भेज दिया गया।

सलीम छटपटाकर रह गया। उसी क्षण से वह अपने प्रतिद्वंद्वी का जानी दुश्मन बन गया। अपने पिता बादशाह अकबर के प्रति भी वह उद्धत और क्रुद्ध हो उठा। उसने पिता से विद्रोह किया। जिस समय अकबर दक्षिण में असीरगढ़ के किले का मुहासिरा कर रहा था, सलीम ने इलाहाबाद में अपने को बादशाह घोषित कर दिया। इस सलीम की आयु तैंतीस बरस की थी।

अकबर का साम्राज्य अब सुसंगठित हो चुका था, और साम्राज्य की वार्षिक आय साढ़े सत्रह करोड़ रुपयों के लगभग थी। जिस अबुलफज़ल ने अकबर को मेहर की शादी शेरअफगन से करने की सलाह दी थी, उसे भी सलीम ने ओरछा के राजा बीरसिंह बुंदेला के हाथ से मरवा डाला। अकबर इन सब बातों से सलीम पर एकदम अप्रसन्न हो गया। बादशाह का एक पुत्र मुराद अत्यधिक शराब पीने से पहले ही मर चुका था और अब दूसरा दानियाल भी शराब पीने से मर गया।