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प्यार
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अफगन को अपने दरबार में बुलाकर कहा-तुमपर राजविद्रोह का अभियोग है। उसने शेरअफगन के साथ कुछ ऐसा अशिष्ट व्यवहार किया कि शेरअफगन क्रुद्ध हो उठा। दोनों आपस में तलवार लेकर जुट गए, और दोनों ही लड़कर मर गए। इसके बाद ही शेरअफगन की बेवा मेहरुन्निसा को आगरा ले जाने के लिए शाही फौज आई, और उसे जाना ही पड़ा।

तीन बरस बीत गए। इस बीच मानसिक द्वन्द्व ने दोनों को आन्दोलित किया। बादशाह बड़ी सावधानी से उसकी गतिविधि को देखता, और अप्रकट रूप से इस बात की व्यवस्था रखता कि उसे कोई कष्ट न होने पाए। सच पूछा जाए तो मेहरुन्निसा के कसीदों और चित्रों की इतनी प्रशंसा तथा अच्छे दामों में उनकी बिक्री होना भी बादशाह के संकेतों पर ही था।

मेहर की दुर्दमनीय महत्त्वाकांक्षा कह रही थी कि वह इस प्रकार कसीदे वगैरा बनाने के लिए पैदा नहीं हुई है। तभी वृद्धा की भविष्यवाणी से उसकी आशाओं को पर लग गए। उसके बाद ही वह अमीरवाली घटना हुई। बादशाह के कानों तक इसकी खबर पहुंची। मेहर ने सुना कि बादशाह ने उसके साहस की प्रशंसा की है। सुनकर उसके होंठ फड़कने लगे, और उसे एक नई वेचैनी सताने लगी, जैसे वह किसी आनेवाले की प्रतीक्षा कर रही हो। परन्तु वह पानेवाला कौन था, जिसके पैरों की आहट के लिए उसके कान चौकन्ने हो रहे थे?

ईद का दिन था, संध्या का समय। रंगमहल में जश्न मनाया जा रहा था। मेहरुन्निसा अपने कक्ष में कालीन पर बैठी, अस्तंगत सूर्य की नज़रबाग में पड़ती आड़ी-तिरछी सुनहरी किरणों को निहार रही थी। उसकी बांदियां लक-दक पोशाक पहने, उसके आसपास खड़ी थीं।

अचानक बांदियों के मुंह से चीख निकल गई। मेहर समझ गई कि कक्ष में कोई पाया है। उसने आंख उठाकर देखा-दीनो-दुनिया के मालिक शहनशाह जहांगीर थे।

बादशाह उसके रूप को देखकर धक रह गया। अब वह उसकी पुरानी परिचिता अस्फुट कली न थी, उसका यौवन भरपूर निखरा हुआ था। वह ऐसा प्रखर था कि उसकी चकाचौंध से आंखें झेप जाती थीं। मेहर ने उस समय कोई खास पोशाक नहीं पहन रखी थी। वह मस्लिन की सफेद सादा पोशाक पहने बैठी थी। किन्तु उसमें से छनकर भी उसका रूप अपनी अद्भुत छटा दिखा रहा था। कदाचित् रत्न-