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सिंहगढ़-विजय
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रस्सियों को फेंककर प्राचीर के कंगूरे में अटका दिया गया। और क्षण-भर में नायक प्राचीर पर चढ़कर लेट गया। इसके बाद दूसरा और फिर तीसरा। इस प्रकार बारह सैनिक दुर्ग-प्राचीर पर चढ़कर, अवशिष्ट सैनिकों को समुचित आदेश देकर किले में उतर गए। दुर्ग में सन्नाटा था। सब चुपचाप दीवारों की छाया में छिपते हुए फाटक की ओर बढ़ रहे थे। फाटक पर प्रहरी असावधान थे। एक ने सजग होकर पुकारा-कौन?

दूसरे ही क्षण एक तलवार का भरपूर हाथ उसपर पड़ा। सभी प्रहरी सजग होकर आक्रमण करने लगे। देखते ही देखते किले में कोलाहल मच गया। जगह-जगह योद्धा शस्र बांधने और चिल्लाने लगे। मशालों के प्रकाश में इधर-उधर घूमने लगे।

बारहों व्यक्ति चारों ओर से घिर गए। परन्तु वे भीम वेग से फाटक की ओर बढ़ रहे थे। प्रहरी मन में भयभीत थे। तानाजी ने एक वार प्रचण्ड जयघोष किया और उछलकर फाटक पर चढ़ बैठे। बारहों साथियों ने शत्रुदल को तलवार के बल चीर डाला; और तानाजी ने साहस करके फाटक खोल दिया।

हर-हर महादेव करती हुई महाराष्ट्र-सेना किले में घुस पड़ी। बड़ा भारी घमासान मच गया। रुंड-मुंड डोलने लगे। घोड़ों की चीत्कार, योद्धाओं की ललकार और तलवारों की झनकार ने भयानक दृश्य उपस्थित कर दिया।

'तानाजी ने ललकार कहा-किधर है यवन सेनापति, जो मर्द की भांति युद्ध करे।

यवन सेनापति ने ज़ोर से कहा-काफिर, मैं यहां हूँ। सामने आ, गरीब सिपाहियों को क्यों काटता है।

तानाजी उछलकर सेनापति के सम्मुख गए। दोनों में घमासान युद्ध होने लगा। दोनों तलवार के धनी थे। मशालों के धुंधले प्रकाश में दोनों योद्धाओं का असाधारण युद्ध देखने को सेना स्तब्ध खड़ी हो गई। तानाजी ने कहा-सेनापति, पहले तुम वार करो, आज मैं तुम्हें मारूंगा।

'काफिर, अभी तेरे टुकड़े किए डालता हूं।' उसने तलवार का भरपूर वार किया।

'अरे यवन, आज बहुत दिन की साध पूरी होगी।' बदले में तलवार का जनेवा हाथ फेंकते हुए तानाजी ने कहा-लो।