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सिंहगढ़-विजय
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शिवाजी ने कहा-मेरा मित्र तानाजी कहां है?

एक अधिकारी ने गंभीर मुद्रा से कहा-वे वीर वहां बरामदे में श्रीमान की अभ्यर्थना को बैठे हैं।

अधिकारी रोता हुआ पीछे हट गया। महाराज ने पैदल आगे बढ़कर देखा। वह निश्चल मूर्ति सैकड़ों घाव छाती और शरीर पर खाकर वीरासन से विराजमान थी। महाराज की आंखों से टपाटप आंसू गिरने लगे। उन्होंने शोक- कंपित स्वर में कहा-सिंहगढ़ पाया, पर सिंह गया।