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शेरा भील
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बाणों की वर्षा कर रहा था। पांच सौ मुगलों ने गांव घेर रखा था। दो-तीन-किशोर वयस्क बालक दौड़-दौड़कर तीर चला रहे थे। स्त्रियां वाणों के ढेर शेरा के निकट रख देती थीं। शेरा का बाण अव्यर्थ था। वह चीरता हुआ आर-पार जा रहा था। शेरा के चारों तरफ बाणों का मेंह बरस रहा था।

शेरा ने देखा, मुगल सैनिकों को रोकना कठिन है। दो-चार सिपाही गांव में आग लगाने का आयोजन कर रहे हैं। उसने स्त्रियों को एकत्र कर, बच्चों सहित उन्हें पीछे करके हटाना शुरू किया। एक तीर उसकी भुजा में लगा। उसने उसे खींचकर फेंक दिया। गेरू का झरना जैसे नील पर्वत से झरता है, रक्त झरने लगा। शेरा ने चिल्लाकर कहा-सब कोई दूसरे जंगल में चले जाओ। गांव की झोपड़ियां धायं-धायं जलने लगीं। शेरा कौशल से बाण मारे जा रहा था और पीछे हट रहा था। उसकी वीरता, साहस और धीरज आश्चर्यचकित करनेवाले थे।

एक वलिष्ठ भील बाला तीर की भांति अरावली की उपत्यकामों की ओर भागी जा रही थी उसने एक ऊंचे पेड़ पर चढ़कर अपनी लाल साड़ी को हाथ की लाठी पर ऊंचा किया। कुछ ही क्षण बाद चींटियों के दल की तरह भीलगण धनुष और बाण आगे किए पर्वत-शृंग से उतर रहे थे। स्त्री वृक्ष से उतरकर अपने रक्त वस्त्र को हवा में फहराती आगे-आगे दौड़ रही थी, पीछे-पीछे भीलों की चंचल पंक्तियां थीं।

गांव में आकर देखा, गांव की झोपड़ियां धायं-धायं जल रही हैं। भील सरदार ने हाथ ऊंचा करके बाघ की तरह चीत्कार किया। चारों तरफ भील वीर बिखर गए। बाणों की वर्षा होने लगी। मुगल सैन्य में आर्तनाद मच गया। उनके पैर उखड़ गए। सैकड़ों ने घोड़े पानी में डाल दिए। उनके रक्त से नदी का जल लाल हो गया। सैकड़ों मुगल वहीं खेत रहे। युद्ध में भील वीर विजयी हुए। युद्ध से निवृत" होकर सरदार ने शेरा को तलाश किया। वह सैकड़ों तीरों से छिदा हुआ एक झोपड़ी की आड़ में निर्जीव पड़ा था।

आज भी उस वीर वृद्ध शेरा के गीत भील बालाएं जब जल भरने आती हैं, गाती हैं।