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सुलह

कई बार वैमनस्य की ग्रन्थियां भोले-भाले बालकों की तुतलाती सहृदय वाणी के मार्मिक आघात पाकर सहज ही खुल जाती हैं। 'सुलह' ऐसी ही एक कहानी है।

काश्मीरी दरवाज़ा पुरानी दिल्ली का चांदनी चौक के बाद सबसे गुलज़ार बाज़ार है। कचहरी और हिंदू कालेज के कारण उसका दिल्ली के इतिहास में सांस्कृतिक महत्त्व भी बहुत है। हिंदू कालेज अब युनिवर्सिटी क्षेत्र में चला गया है, और हिन्दू कालेज की उस बिल्डिंग में अब कचहरी का अमल है। परन्तु वह भव्य ऐतिहासिक इमारत अब भी हिंदू कालेज के ही नाम से प्रसिद्ध है। हिंदू कालेज के कारण नगर के शिक्षित तरुण, और कचहरी के कारण भले-बुरे सभी नागरिक काश्मीरी दरवाजे जाते-आते ही रहते हैं। इसीसे नगर का यह भाग सदा चहल-पहल से भरा रहता है। इसमें पुरानी दिल्ली की रंगीनी भी है, और नई दिल्ली की शान भी। इसके अतिरिक्त, काश्मीरी दरवाजे के बाहर सत्तावन के विद्रोह के अमिट चिह्न भी हैं। दूर तक शहर-पनाह की दीवारों पर अंग्रेजों के बरसाए हुए गोलेगोलियों से शहर-पनाह और दरवाजा छलनी हुआ पड़ा है। जैसे चेचक का प्रकोप मुंह पर अपने अशुभ दाग छोड़ जाता है, वैसे ही अंग्रेज़ भी काश्मीरी दरवाजे पर अपने गोले-गोलियों के घाव छोड़ गए हैं। जब तक अंग्रेजों की अमलदारी थी, प्रत्येक अंग्रेज़ उन निशानों को गर्व से देखता था, और प्रत्येक भारतीय लाज से अपना सिर नीचा कर लेता था। पर आज वही निशान संग्राम के स्मृति-चिह्न बन गए हैं।

हिन्दू कालेज के प्रति मेरा प्रिय भाव भी बहुत था। बहुधा, मैं छात्रों के बीच भाषण दे आया हूं। बहुत बार छात्रों और अध्यापकों ने मुझे चाय-पान का आनंद प्रदान किया है। वहां के गुंजान फुलवारियों से भरे प्रांगण में ज्ञान-पिपासु तरुण छात्र-छात्राओं के हंसते मुंह देखने के प्रलोभन से मैं चाहे जब, बिना काम, और बिना बुलाए ही वहां जा पहुंचता था। अब जो सुना, कि वहां कचहरियां आ