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सुलह
 

छरहरी, लम्बी और सुन्दर श्यामल वर्ण । गोद में कोई ढाई-तीन साल का बच्चा स्वस्थ, और सुन्दर ! परिधान साधारण साड़ी। अति स्वच्छ बच्चे को कन्धे पर लिए चुपचाप खड़ी थी। मुद्रा क्रोध-भरी थी । उसकी बगल में एक सूखा, चिड़ी-सा दुबला-पतला, लम्बा -वेतुका-सा वकील अपनी मनहूस नज़रों को काले चश्मे में छिपाए, नकली गम्भीर मुद्रा में खड़ा था। उसकी बगल में ही तरुणी का पति कुछ बेचैन-सा खड़ा था। गहरी उदासी की छाया ने उसके वीरान चेहरे को एकदम उजाड़ दिया था। उसकी भूखी और खोई-सी नज़र रह-रहकर, तरुणी पर पड़ रही थी। परन्तु तरुणी एकदम भावहीन पत्थर की मूर्ति की भांति, निष्ठुर, निर्मम मुद्रा में खड़ी थी। मामला शायद छोड़-छुट्टी और गुज़ारे का था। मुद्दइया वही तरुणी थी। पति के भी बगल में एक ठिगने, गोल-मटोल गुदगुदे वकील साहब खड़े,रह-रहकर अपनी पतलून की जेब में बार-बार हाथ निकाल और डाल रहे थे। दोनों वकीलों से उनके मुवक्किल, थोड़ी-थोड़ी देर में, घुसफुस-घुसफुस बात कर लेते थे, जैसे अब इस स्थान पर वही परस्पर गहरे सगे-सम्बन्धी हों।

मुकदमा आरम्भ हुआ और जज ने तरुणी के पति से कुछ प्रश्न किए। ज्योंही युवक के मुंह से बात फूटी, तरुणी की गोद में सोया हुआ बच्चा, चौकन्ना होकर इधर-उधर देखने लगा। पिता पर दृष्टि पड़ते ही वह जोर से 'पापा, पापा' कह-कर, और दोनों हाथ फैलाकर पिता की गोद में जाने के लिए बावेला मचाने लगा। और तरुणी उसे अपनी गोद में जकड़े रखने के लिए भरपूर ज़ोर लगाकर, उसे चुप करने का असफल प्रयत्न करने लगी। परन्तु बालक ने 'पापा, पापा' का ऐसा शोर मचाया, और इस कदर रोना शुरू किया, कि अदालत का कामकाज एक-बारगी बन्द हो गया; और जज तथा वकील परेशान होकर उस नन्हे प्राणी को देखने लगे। वह प्रकृति के एक ऐसे सत्य को पुकार-पुकारकर अदालत से कह रहा था, कि मेरे दावे के सामने तुम्हारा सारा ही कानून बघारना व्यर्थ है ।

जज और वकीलों ने बहुत समझाया कि थोड़ी देर के लिए वह स्त्री बच्चे को पति की गोद में दे दे। यहां तक, कि जज ने कहा, कि बच्चे पर पति ही का अधिक हक है। पर, वह स्त्री, कसकर बच्चे को छाती से लगाए, वज़िद उसे किसी तरह पति को देने पर आमादा न हुई। लेकिन बच्चा बड़े ज़ोर से 'पापा' कहकर करुण क्रंदन कर रहा था। उसके दोनों नन्हे-नन्हे हाथ हवा में उठे हुए थे, और उसका