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कहानी खत्म हो गई
२३
 


उसके बाद वह और दो-चार बार मुझसे एकान्त से मिली। और ब्याह की बात पर उसने जोर दिया। मैंने टालटूल की और अन्त में मैंने साफ इन्कार कर दिया।

उस दिन अकस्मात् पुलिस दलबल-सहित उसे लेकर गढ़ी में आ गई। मामला क्या है, इसे जानने के लिए उसके साथ बहुत लोगों की भीड़ थी। सब भांति-भांति की बातें कर रहे थे। पुलिसवालों ने उसे मारा-पीटा भी था। चोट के निशान उसके मुंह और शरीर पर थे। उसके वस्त्र जगह-जगह फट गए थे। बाल उसके बिखरे थे और चेहरे पर मुर्दनी छाई थी। आंखें उसकी फटी-फटी-सी हो रही थीं। शरीर में जगह-जगह खून लगा था। ओठों से भी खून बह रहा था।

पुलिस का अफसर सुशिक्षित तरुण था। वह मुझे जानता था। कहना चाहिए, मेरा मित्र था। पुलिस ने एक औरत के साथ मारपीट की है मेरे गांव में आकर?-- यह बात जानकर गुस्से से मैं लाल हो गया। मेजर वर्मा उस दिन वहीं थे। गुस्सा इन्हें भी बहुत हुआ। हम लोगों ने पुलिस को खूब खोटी-खरी सुनाई। मैंने कहा उसने क्या जुर्म किया है, क्या नहीं, इसकी बात मैं नहीं कहता। पर आपको इसे मारने-पीटने का कोई अधिकार न था।

पुलिस-अफसर ने शांतिपूर्वक हमारा--मेरा और मेजर साहब का-गुस्सा सहन किया। फिर उसने कहा-चौधरी साहब, मुझे आपसे एकान्त में कुछ कहना है। यदि गांव आपका न होता तो मैं यहां आता भी नहीं। इसे थाने में ले जाता। पर आपका मुझे बहुत लिहाज़ था--इसीसे।

मैंने कहा-आखिर मामला क्या है?

'पाप जरा दूसरे कमरे में चलिए।'

मैं, मेजर वर्मा, वह और पुलिस-अफसर दूसरे कमरे में चले आए। अफसर के कहने से मैंने भीतर से चटखनी चढ़ा दी। किसी अज्ञात भय से मेरी अन्तरात्मा कांप उठी। मैं एकाएक पुलिस अफसर के मुंह की ओर देखने लगा। और तब उसने तरबूज़ की मिसाल दी। और मैं अब बयान नहीं कर सकता। मेजर वर्मा कहेंगे, इन्होंने वह सब देखा है।

'बेशक मैंने देखा था। ऐसा खौफनाक, दिल हिला देनेवाला वाकया जिंदगीभर मैंने नहीं देखा था।' कुछ ठहरकर मेजर वर्मा बोले-अफसर ने मेरी तरफ