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कहानी खत्म हो गई
 


देखकर, क्योंकि मैं ही ज्यादा गर्म हो रहा था, व्यंग्यपूर्ण भाषा में कहा-जनाब, आप एक तरबूज़ लेकर उसे सिर से ऊपर उठाकर पटक दें तो कह सकते हैं कि उसका क्या परिणाम होगा?

उस नौजवान पुलिस अफसर की यह दिल्लगी मुझे न भाई। मैंने ज़रा गर्म लहजे में कहा-तरबूज़ फट जाएगा। लेकिन आपका मतलब क्या है? इस औरत ने तरबूज़ की चोरी की है?

'जी नहीं! क्या किया है देखिए।' उसने कान्स्टेबिल को संकेत किया। और उसने हाथ में लटकते हुए झोले को ज़मीन पर उलट दिया। एक वज़नी-सी चीज़ धमाके के साथ ज़मीन पर आ गिरी। वह एक ताज़ा बच्चे की लाश थी।

मिसेज़ शर्मा के मुंह से चीख निकल गई। भारद्वाज हाथ की सिगरेट फेंककर खड़े हो गए, दूसरे लोग भी अवाक रह गए। भारद्वाज ने कहा-क्या ताज़ा बच्चे की लाश? हौरेबल-माई गॉड!

लेकिन मेजर वर्मा ने आगे कहना जारी रखा-बच्चे को शायद पत्थर पर या किसी सख्त चीज़ पर पटका गया था, जिससे उसका सिर उसी तरह फट गया था जैसे ऊंचे से फेंक देने से तरबूज़ फट जाता है। और उसके भीतर से लाल-लाल लोहू-तोबा-तोबा! मेजर वर्मा वाक्य पूरा किए बिना ही सिर पकड़कर बैठ गए।

फिर उन्होंने कहा-पुलिस-अफसर ने बताया कि यह औरत तस्लीम करती है कि पहले हमल गिराया गया, लेकिन बच्चा ज़िन्दा पैदा हुआ। उसका गला घोंटकर मार डालने की चेष्टा की गई, पर बच्चा मरा नहीं। तब उसे चक्की के पत्थर पर सिर के बल पटक दिया गया। उससे उसका सिर फट गया। पुलिस वालों ने बताया कि मार खाने पर ही इन सब बातों का पता इसने बताया है। पर बच्चा किसका है यह किसी हालत में बताती नहीं है। इसीसे हम निरुपाय इसे यहां लाए हैं। उसने चौधरी साहब से आग्रह किया था कि वह इस औरत से उस आदमी का पता पूछे और कानून की मदद करें। चौधरी तब बहुत परेशान हो उठे थे, इसका कारण मैं तब नहीं समझा था-अब समझा कि"

अब फिर मैं कहने लगा-कचहरी में मैं पागल की भांति चीख उठा कि उस बालक का पिता मैं था। जी हां, उस बालक का पिता मैं था। वह मेरा बच्चा था,

क- १