पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
रानी रासमणि
२५१
 

ढकोसले मैं नहीं मानती। आप तो जानती हैं कि मैं एक क्रिस्तान अंग्रेज अफसर की पत्नी हूं। आइए, भीतर आइए।' रानी ने भीतर आकर बैठते हुए कहा:

'अब तो आ ही गई हं, बेटी। परन्तु अनुमति दो-बिटिया के लिए जो ही कुछ थोड़ा फल-मूल ले आई हूं, उन्हें यहां मंगा लूं।' उन्होंने महेशचन्द्र को संकेत किया। महेशचन्द्र बहेंगियों को लिए हुए दालान तक चले आए। इतनी सामग्री देख शुभदा देवी हक्का-बक्का रह गईं। उनके दिल में सन्देह हुआ कि जैसी भारतीयों की आदत है, रानी इतनी भारी डाली लेकर किसी मतलब से तो या नहीं आई हैं? उन्होंने कहा-यह सब आप क्यों ले आई हैं। मेरे पति तो यह स्वीकार नहीं करेंगे?

'दूसरी बात क्यों सोचती हो बेटी, मैं तुम्हारे पति से बात कर लूंगी। वे भला बेटी और मां के बीच क्या बोल सकते हैं? कहां हैं तुम्हारे पति बेटी?'

'छावनी में बहुत गड़बड़ी हो गई है। एक सिपाही ने मस्तिष्क का सन्तुलन खो दिया है, उसने अपने अफसरों को मार डाला है और स्वयं भी गोली मारकर आत्मघात करने की केष्टा की-पर वह मरा नहीं। आज उसका कोर्ट मार्शल है। मेरे पति वहीं गए हैं।'

'वह सिपाही कौन है?'

'एक ब्राह्मण है, बनारस की ओर का पाण्डे है।'

'तो बेटी, ब्राह्मण की प्राण-रक्षा अवश्य होनी चाहिए। तुम्हारे पति भी क्या उसके विरुद्ध हैं?'

'नहीं, वे भरसक उसके जीवन की रक्षा का उपाय करेंगे। परन्तु सेना की दशा बहुत खराब है। ये अपढ़ मूढ़ सिपाही झूठी-सच्ची बातों पर विश्वास करके व्यर्थ ही उत्तेजित हो रहे हैं। सब लोग कहते हैं कि देश में एक ऐसा आन्दोलन चल रहा है कि सब अंग्रेजों को मार डाला जाएगा। कारतूस की बात तो आपने सुनी ही होगी?'

'कारतूस की बात कैसी?'

'कि नये कारतूसों में सुअर और गाय की चरबी लगी है। इस बात की झूठ• सच की जांच किए बिना ही सिपाही उत्तेजित हो रहे हैं।'

'कुछ और भी तो कारण हो सकता है वेटी। खैर, मैं तो तुमसे इसी मामले