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रानी रासमणि
 

में बातें करने आई हूं।'

'क्या आप मेरे पति से कोई अनुरोध करेंगी?'

'नहीं बेटी, मैं तो तुम्हींसे बात करूंगी।'

'तो कहिए, क्या याज्ञा है?'

रानी ने ब्राह्मण पण्डित का हवाला देते हुए शुभदा की सुहाग-रक्षा के अपने उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में उसे बता दिया।

'बड़ी विचित्र बात है! क्या आप उसकी बात पर विश्वास करती हैं?' शुभदा ने पूछा।

'विश्वास करके ही यहां आई हूं बेटी। मेरा तो वैसे भी तन-मन ब्राह्मण ही की सेवा-चाकरी के लिए है। तो मैं तुमसे और तुम्हारे पति से यह अनुरोध करने आई" हूं कि यदि भगवान न करे कभी ऐसा दुर्दिन आए तो तुम जानबाज़ार के महल को अपना ही समझना। मेरे महल में दो सौ सिपाही हैं। और भी आदमी हैं। वहां कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगा। तुम अपने पति और इष्टमित्रों सहित वहीं आ जाना।'

'आपका आश्वासन और कृपा असाधारण है। मैं अपनी ओर से तथा अपने पति की ओर से आपको धन्यवाद देती हूं।'

'बेटी होकर मां को धन्यवाद देती हो? कलियुगी बेटी हो तुम बिटिया," रानी यह कहकर हंस दी। फिर उसने कहा-इस समय तुम्हारे पति से भेंट न हो सकी, पर मेरा सन्देश तुम उनसे कह देना। अथवा यह अधिक ठीक होगा कि एक बार तुम उन्हें लेकर जानबाज़ार आ ही जाओ, तो आवश्यकता होने पर क्या-क्या प्रबन्ध-व्यवस्था करनी होगी, इसका ठीक-ठिकाना कर लिया जाए।'

'मैं ज़रूर उनसे कहूंगी।'

'मुझे पत्र लिखोगी या मैं चट्टोपाध्याय महाशय को तुम्हारे पास भेजूं?'

'मैं ही आदमी भेजूंगी।'

'तो बेटी, भूल न करना। कहीं ऐसा न हो ब्राह्मण की आज्ञापालन में मुझसे चूक हो जाए और मेरा धर्म-कर्म सब नष्ट हो जाए।'

'नहीं, महारानी, ऐसा नहीं होगा। किन्तु आप क्या इस भ्रष्ट ब्राह्मणी के यहां कुछ भी खाएं-पिएंगी नहीं?'

'नहीं बेटी। नाराज़ मत होना। मैं तीसरे प्रहर गंगा-जल से स्नान करके