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बड़नककी
 


निस्तेज न हुआ था, मेवाड़ का मानो अजमेर सिंहद्वार है। उधर गुजरात का 'फाटक भी यहां से ही खुलता है।

उन्हीं दिनों की बात है। लाखन कोठरी के इस तरफ जहां आजकल धानमण्डी का मोड़ हैं और इस समय जहां सड़े हुए अन्न की दुर्गन्ध सदा बनी रहती है तथा टूटी हुई सड़क और टूटी-सी एक दुमंजिला इमारत खड़ी है, वहां एक तिखण्डा आलीशान महल था, जिसके द्वार पर सदैव श्रीमन्तों और उमरावों की सवारियों का तांता बंधा रहता था। यह आलीशान महल एक वेश्या का था। और उसका नाम था-बड़नककी।

बड़नककी अपने ज़माने में समस्त राजपूताने में प्रख्यात वेश्या थी। उस समय वेश्याओं से सम्बन्ध रखना रईसों और उमराओं के लिए एक शान की बात समझी जाती थी। जातीय सुधारक युवक-दल तब कहां था, खद्दर और स्वराज्य के नारे सोए पड़े थे। उत्थान और नव्य जीवन राजपूताने को त्याग चुका था। तब थी एक मूर्छा की बदमस्ती। उसमें समस्त मारवाड़ सो रहा था और प्रतापी ब्रिटेन का यूनियन जैक हवा में लहराकर उस बदमस्त सोते हुए मारवाड़ रसिया को ठंडे थपेड़ों से सुला रहा था।

वेश्या और मद्य उस समय के जीवन की आवश्यक सामग्री थी। घर-घर भट्टियां थीं और अनेक जाति की सुवासित मदिरा घरों में ही तैयार होती और 'पानी की तरह पी जाती थी।

बड़नककी की आयु चालीस को पार कर गई थी, उसकी नाक अपेक्षाकृत कुछ बड़ी था, उसीने उसे इस नाम से प्रसिद्ध भी किया था। चालीस वर्ष की आयु तक उसने बड़े-बड़े घरवाले, बड़े-बड़े मार्के जीते, बड़े-बड़े मूंछ-मरोड़ों को ढीला किया। सरदारों को भिखारी बनाना और सेठों के दिवाले निकलवाना बड़नककी के बाएं हाथ का खेल था। प्रतिवर्ष सुन्दर बालिकाएं देहात से संग्रह करके उन्हें पहनने, प्रोढ़ने, अदब-कायदे की तालीम देकर रईसों और सेठों को बेचना उसके व्यापार का एक खास अङ्ग था। श्रीमन्त, साहूकार और सरदारों को दूसरे धन'पति मित्रों से कर्जा दिलाना, जायदाद गिरवी रखाना, सुलह और विग्रह कराना, बड़े घराने की बहू-बेटियों को अनायास ही उड़ा लेना बड़नककी के व्यवसाय का विस्तार था। उसकी शाखाएं-बीकानेर, जयपुर, उदयपुर, कोटा, बूंदी, जोधपुर