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बड़नककी
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यह स्वप्न में भी न सोचना कि मैं तुमसे नाराज हूं। तुम्हारे द्वारा जीवन में जो सुख मिला है, वह जीवन में कभी भूलने की वस्तु नहीं। अब से हम दोनों विशुद्ध मित्र रहे। प्रिये विदा!

पत्र बड़नककी के हाथ से गिर गया। उसने पत्र से ज्योंही दृष्टि उठाई, दासी ने सेठ को सम्मुख ला खड़ा किया। बड़नककी हड़बड़ाकर उठ बैठी और बोली ओफ, आज इतने दिन बाद अचानक पधारे, हमारे अहोभाग्य! मैं तो समझी, हुजूर ने मुझे भुला दिया। कमला ने कितनी बार याद किया। मैंने कहा, बेटी, सब्र कर। रईस कब किसके होते हैं! यहां तो एक पाते और एक जाते हैं। पर सुनती ही नहीं, तभी से उदास रहती है। मैंने सोचा कि आपको लिखू, पर कुछ सोचकर रह गई। हां, यह तो कहिए, हुजूर का मिजाज़ तो अच्छा है?

'बहुत अच्छा हूं। मैं जोधपुर चला गया था। एक गंभीर मामला हो रहा है। अब तुमसे तो कुछ छिपा नहीं है। 'खानदान को तुम जानती ही हो, अब या तो अजमेर में वे नहीं या मैं नहीं। मैंने वह हाथ धरा है कि कल दस बजे दुनिया जानेगी कि सेठ'..."का टाट उलट गया।'

बड़नककी ने पास खसककर कहा--आखिर तुमने ऐसी कारस्तानी क्यों की है? कुछ सुनूं भी। मुझसे क्या छिपा रहे हो, सभी धन्धे तो मेरी मार्फत होते हैं।

‘पर यह धन्धा कुछ और ही है। (धीरे से) कल पचास लाख की हुंडियों का भुगतान सेठजी को करना पड़ेगा। (मुस्कराकर) हुंडियां ये जेब में पड़ी हैं, वहां रुपया है नहीं। मैं जोधपुर, बीकानेर, जयपुर सभी जगह से उनकी हुंडियां खरीद लाया हूं।'

बड़नककी ने मन का भाव दबाकर कहा-गजब करोगे। खैर, तो यह कहिए कि सैकड़ों वर्ष के पुराने घराने को बर्बाद कर देंगे? आपने बड़ा भारी परिश्रम किया।

'क्या पूछती हो? कई महीने दौड़धूप करनी पड़ी है। नहीं तो क्या मैं बिना आपके और कमला के रह सकता था? हां, कमला कहां है?"

'आठ दिन के लिए जयपुर भेज दिया है। बड़ी उदास रहने लगी थी।'

'वाह, यह तो बुरी सुनाई।'

'क्यों कमला न सही, मैं तो हाज़िर हूं।'

'आप अपनी जगह और कमला कमला की जगह है।'