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बड़नककी
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देखकर लोग नजफखां पठान की ताकत को समझ गए थे और जब हुक्म होता, जितने रुपयों के लिए होता, जिस दरख्त या मुकाम का पता होता, रुपया वहां गड़ा हुआ तैयार मिलता। इस तरह नजफखां मुद्दतों अमीरों के रुपयों पर आनन्द करता रहा। उसे पकड़ने में कोई समर्थ न था। पुलिस सिर फोड़कर मर गई। सिपाहियों और इंस्पेक्टरों की तो बात ही क्या, पुलिस-सुपरिटेण्डेण्ट तक उससे पिट चुके थे। और बन्दूक तथा घोड़ा छिनवा चुके थे।

बड़नककी गाल पर हाथ धरे बड़ी देर तक इस मामले पर विचार करती रही। अन्त में उसने निश्चय किया कि पुलिस-सुपरिटेंडेंट से इस घटना की इत्तिला करनी चाहिए। भला वेश्या का माल एक डाकू गुण्डा इस तरह हजम कर जाए--जैसे कि बनियों का खाता है। दुनिया को हम लूटती हैं और यह हमें लूटने चल पड़ा। यह कदापि न हो सकेगा। यह इरादा पक्का करके जैसे-तैसे बड़नककी ने रात काटी। सुबह वह मुलाकात की पोशाक पहन गाड़ी मंगा साहब के बंगले को रवाना हो गई।

डिप्टी सुपरिटेंडेंट भी उसके चेले थे। जूतियां सीधी कर चुके थे। खबर पाते ही फौरन बाहर निकल पाए। मुलाकात के कमरे में ले गए और खैरियत पूछने लगे।

बड़नककी-हुजूर, खैरियत कहां? वह मुया नजफखां कल आया था। कह गया है कि या तो दस हजार कल मसाणिया पीपल के नीचे रख पायो नहीं तो खैर नहीं। और उस बदमाश से कुछ बईद भी नहीं है। वह ज़रूर मुझे मार डालेगा, अगर रुपये न गए तो। और आप देखते हैं, रुपये मुझ गरीब के पास कहां हैं। गनीमत है, खुदा का शुक्र है, तिस पर...।

बीच ही में डिप्टी साहब बोल उठे-बी साहबा, रुपये-पैसे की तो आपके पास कुछ कमी नहीं है। मगर वह क्या ऐसे बदमाशों के लिए है? आखिर आपने भी तो उसे अपना तन-बदन दिखाकर किन-किन मुश्किलात से पैदा किया है। वह क्या इस तरह बर्बाद करने के लिए? ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता।

बड़नककी ने ज़रा भंपकर कहा-हां, हां, हुजूर परवर। यही तो---यही तो मैं अर्ज कर रही थी। मगर हमारी ऐसी कमाई, अगर वह कुछ भी हो, तो क्या इन बदमाशों के लिए है? हर्गिज नहीं। हुजूर, इसका कुछ बन्दोबस्त तो होना ही चाहिए, वरना मैं मारी जाऊंगी।