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बड़नककी
 


तुम्हारा नजराना मैं पहले ही दे चुका हूं। तुम रण्डी हो या और कुछ? समझ लो, मैं ज्यादा लल्लो-चप्पो नहीं पसन्द करता। या तो गाओ, वरना में तुम्हारे टुकड़े कर दूंगा।' यह कहकर उसने तलवार म्यान से खींच ली। वसन्ती पीली पड़ गई। उसके मुंह से बात न निकली। वह सकते की हालत में डाकू का मुंह देखती रही।

डाकू ने तलवार धरती पर फेंककर चीते की तरह झपटकर और उसे उठाकर भरपूर ज़ोर से पलंग पर फेंक दिया। उसका इरादा पाशविक था, परन्त इसी समय बहुत-से मनुष्यों का शोर सुनकर वह चौंका। उसने खिड़की का पर्दा उठाकर देखी-सैकड़ों पुलिस के और फौज के सिपाहियों ने मकान घेर रखा है। उसने दांत मिसमिसाकर कहा-उफ, दगा-दगा!-इतना कहकर उसने सिंह की तरह हुंकार भरी। बिजली की तरह लपककर उसने बालिका के शरीर पर के आभूषण उतार लिए, इसके बाद वह आंधी की तरह कोठरी से बाहर निकल गया। जीना भीतर से बंद किया। बड़नककी उसे देखकर थरथर कांप रही थी। मीरा सी और नौकर दीवारों से चिपक रहे थे। उसने रस्सी से सबको जकड़ दिया। और मकान की तलाशी लेनी शुरू की। रुपया-पैसा-जेवर जो मिला गांठ बांधी। सब सन्दूक तोड़ डाले। जड़ाऊ ज़ेवर और जवाहरात कब्जे में किए। बांध-बूंधकर वह छत पर चढ़ गया।

इसके बाद उसने तेज़ आवाज़ में डिप्टी सुपरिण्टेण्डेण्ट को लक्ष्य करके कहा आदाबर्ज़ है डिप्टी साहब!

डिप्टी साहब-अब आप नीचे तशरीफ ले आइए। आदाब-कोनिश सब यहीं हो जाएगा।

डाकू-आप ही आए हैं या हमारे साले साहब बेजबर (मेजर वेजवुड, पुलिससुपरिण्टेण्डेण्ट) भी हाज़िर हैं?

'वे भी हैं जनाब! अब आप ज़रा जल्दी इधर तशरीफ ले आइए। सभी लोग आपकी तवाजे के लिए मुन्तज़िर खड़े हैं।'

'बहुत अच्छा, यह लीजिए', यह कहकर उसने एक बड़ा-सा टोकरा जो कूड़ाकचरा, राख, टूटी चिमनी आदि से भरा छत पर धरा था, झपाक से उठाकर सुपरिटेण्डेण्ट के सिर पर पटक दिया।

सिपाही लपके, परन्तु नजफखां सुयोग पाकर दूसरी तरफ कूदकर नौ-दो ग्यारह हुआ।