पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/६२

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विधवाओं की तरह पवित्र जीवन व्यतीत करने का परामर्श दिया। परन्तु मेरी प्रतिज्ञा अटल थी। दिन-रात मैं यही सोचा करती थी कि किस तरह पापी दारोगा से बदला लिया जाए। आखिर, एक दिन एक छोकरा मुझे एक पत्र दे गया। पत्र मुहल्ले के एक युवक ने लिखा था, जो कभी-कभी मेरी बहिन के घर पाया करता था। उसने लिखा था कि अगर तुम मेरी होकर रहो तो मैं दारोगाजी से तुम्हारे अपमान का बदला ले सकता हूं। मैं फौरन राजी हो गई और एक दिन सुयोग पाकर उसके साथ चल निकली। उसने शहर से दूर एक गांव में मुझे ले जाकर रखा। चार-पांच महीने तक हम दोनों पति-पत्नी की तरह रहे। वह बराबर मुझे भरोसा देता रहा, मैं भी उसके विश्वास पर थी और दारोगा की मृत्यु-कामना किया करती थी। परन्तु ईश्वर को मेरी छीछालेदर ही मंजूर थी।

फलतः इस दूसरे युवक ने भी मुझे धोखा दिया और एक दिन बिना कुछ कहेसुने न जाने कहां गायब हो गया। हाय! अब मैं दीन-दुनिया कहीं की न रही। एक बार फिर बहिन की शरण में जाने का विचार किया, परन्तु साहस न हुआ। इसी उधेड़-बुन में कई दिन बीत गए।

मेरे पड़ोस में एक बुढ़िया रहती थी वह कभी-कभी मेरे पास आया करती थी और घण्टों बैठकर इधर-उधर की बातें किया करती थी। उसने युवक के धोखा देकर भाग जाने का समाचार सुना तो बड़ी सहानुभूति प्रकट की और फिर आश्वासन देकर बोली कि तुम्हें चिन्ता किस बात की है। भगवान ने तुम्हें रूप और जवानी दी है। तुम चाहो तो, खुद दस आदमियों को खिला सकती हो। पहले तो उसकी बात मेरी समझ में न आई। परन्तु अन्त में मेरे प्रश्न करने पर उसने साफ-साफ शब्दों में मुझे वेश्यावृत्ति करने की सलाह दी और साथ ही इस सम्बन्ध में मेरी सहायता करने का भी वचन दिया। यद्यपि मुझे पहले इस काम में बड़ी हिचकिचाहट मालूम हुई; परन्तु बुढ़िया ने मुझे समझा दिया कि इसके सिवा और कोई पथ नहीं है। अन्य उपाय न देखकर, मैं राजी हो ही गई।

शहर में उपयुक्त स्थान पर बुढ़िया ने किराये पर एक मकान ले दिया और आवश्यक सामान अपने पास दे दिया। मेरा रोज़गार चलने लगा और बुढ़िया भी मेरी अभिभाविका बनकर मेरे साथ ही रहने लगी। एक उस्तादजी को बुलाकर उसने मुझे गाने और नाचने की भी तालीम दिलाई।

बस बाबू जी, यही मेरी संक्षिप्त राम-कहानी है और यही वह बुढ़िया है। अब