पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/६४

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उससे विवाह कर लिया था। इसलिए पहली ही रात को पति-पत्नी में कुछ ऐसी अनबन हो गई कि दारोगाजी को सदा के लिए परित्याग कर देना पड़ा। परन्तु पत्ली ने दारोगाजी से अपने सतीत्वापहरण का बदला लेने की ठान ली। यह बदला लेने की धुन यहां तक सिर पर सवार हो गई कि उसीके लिए अन्त में उसे वेश्या बन जाना पड़ा। कई युवकों से इसी शर्त पर उसने दुराचार भी कराया। पण्डित मुरलीधर ने यह सारी कहानी सुनी तो एकदम आपे से बाहर हो गए। मथुरा से दिल्ली चले गए और वहां उसी वेश्या के पास ठहरकर उसके पति का पता लगाया। इसके बाद किसी तरह उक्त दारोगा के पास पहुंचे और एक दिन मौका देखकर उसके पेट में छुरी घुसेड़ दी।

पण्डितजी ने अदालत के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और बड़ी प्रसन्नता से फांसी पर चढ़ जाने को तैयार हैं।

मैंने कहा-यह रेलगाड़ीवाली घटना तो मेरे सामने की है। उस समय मैं दिल्ली जा रहा था और पण्डितजी यमद्वितीया नहाने मथुराजा रहे थे। बल्कि सच पूछो तो मेरे ही अनुरोध से उस वेश्या ने अपनी राम-कहानी हम लोगों को सुनाई थी। खैर, तो क्या उस स्त्री को भी यह सब मालूम है?

'हां, वह भी पण्डितजी के साथ ही दिल्ली से आई थी। पहले उसने दारोगाजी को देखकर अच्छी तरह पहचान लिया तब यह घटना हुई। पण्डित मुरलीधर ने तो अपने बयान में उसके आने का कोई जिक्र नहीं किया था। परन्तु इनके गिरफ्तार हो जाने पर वह खुद कोतवाली में आई और बयान दिया कि यह खून मैंने कराया है। इसकी सारी जिम्मेदारी मुझपर है।

'पुलिस ने उसे गिरफ्तार करके हिरासत में ले लिया। परन्तु वहां जाने से पहले उसने जहर खा लिया था, इसलिए उसी रात को उसका देहान्त हो गया।'

मैंने कहा--पण्डित मुरलीधर तो विचित्र मनुष्य निकले। उनके मुकदमे के सम्बन्ध में तुम्हारा क्या अनुमान है?

उन्होंने कहा- उन्हें फांसी की सजा होगी।