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वेश्या
 

इस अपवित्र धृष्टता को क्षमा करें। अच्छा, अब हम मन को विचलित न होने देंगे। अस्तु । बालिका अपने जन्मसिद्ध गर्व और मस्तानी अदा को विस्मृत-सी करती हुई तितली के पीछे फिर रही थी। निकट ही एक भद्रपुरुष बेंच पर बैठे उसे एक-टक देख रहे हैं, इसका उसे कुछ ध्यान न था। बालिका के निकट पहुंचने पर भद्र-पुरुष उठ बैठे। उन्होंने किंचित् हंसकर मधुर स्वर से कहा-गरीब जानवर को क्यों दुख देती हो ; उसने तुम्हारा कुछ चुराया है क्या?–बालिका ने क्षण-भर स्तब्ध खड़ी होकर भद्र पुरुष को देखा-प्रोफ! उन्हीं नेत्रों से, दो बार होंठ फड़के और उसके बाद बिजली की रेखा के समान दन्त-पंक्ति प्रकट हुई। बालिका ने बिना हिचकिचाए कहा-कैसी खूबसूरत है--आप ज़रा पकड़ देंगे?

'सिर्फ इसलिए कि खूबसूरत है ?'

बालिका समझी नहीं, पर उसने गर्दन हिला दी। भद्र पुरुष आगे बढ़कर एक-दम बालिका के निकट आ गए। एक प्रबल आन्दोलन उनके हृदय में पालोड़ित हो उठा । एक अस्वाभाविक उन्माद में वे कह उठे:

'तुम खुद कितनी खूबसूरत हो ? तुम्हें कोई इसीलिए पकड़ ले तब ?' बालिका ने भद्र पुरुष को निकट आते और उपर्युक्त शब्द कहते सुन, एक बार फिर उसी तरह उनकी तरफ देखा--उसी तरह उसके होंठ फड़के। पर वह बोली नहीं । उनने वहां से भागने का आयोजन किया। भद्र पुरुष हंस पड़े। उन्होंने उसके दोनों हाथ पकड़कर कहा--लो, पकड़ी गई तो भागती हो?

सामने से आवाज़ आई--गुलबदन !

'छोड़िए, अम्मी बुलाती है।'--बालिका ने किंचित् झुंझलाकर कहा।

'मगर तुम्हारा नाम?'

'मैं नहीं बताने की।'

'तुम्हारी अम्मी का क्या नाम है ?'

'मैं नहीं बताती, छोड़िए।'-बालिका ने खींचकर हाथ छुड़ा लिया। वह भाग गई।

भद्र पुरुष ने क्षण-भर बालिका की ओर देखा--तितली की तरह उड़ी जा रही थी। सामने कुछ दूर पर उसकी मां और दो-तीन व्यक्ति खड़े थे । भद्र पुरुष ने निकट खड़े एक व्यक्ति से कहा :

'अहमद ?'