पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६८
वेश्या
 

श्री"""थे। आप सीधे यूरोप की यात्रा से आ रहे थे और आपको राज्याधिकार प्राप्त हुए कुछ ही मास हुए थे। आपकी अवस्था इक्कीस के लगभग थी। आपकी वेष-भूषा यद्यपि साधारण थी, परन्तु राजत्व का गाम्भीर्य मुख-मुद्रा में था। वह बालिका उसे क्या लक्ष्य कर सकती थी?

रॉयल होटल के सर्वश्रेष्ठ कमरे में ज्वलन्त बिजली के प्रकाश में सुन्दर रंगीन कांच और चीनी के पात्रों में अंगरेज़ी ढंग के खाने चुने जा रहे हैं--होटल के सिद्धहस्त कर्मचारी और बैरा ज़र्क-वर्क पोशाक पहने एक यूरोपियन व्यक्ति की देखरेख में सब कुछ सजा रहे हैं। श्रीमन्त महाराजाधिराज के पधारने का समय हो गया है। ठीक समय पर महाराज केवल एक पार्श्वद के साथ पधारे। कर्मचारी ने नतमस्तक होकर महाराज का अभिवादन किया। महाराज ने किंचित् हास्यवदन से इधर-उधर देखा और कर्मचारियों को धन्यवाद दिया। क्षण-भर बाद पूर्व व्यक्ति ने संकेत से गुलबदन और उसकी माता के आगमन की सूचना दी। सब लोग बाहर चले गए। बालिका अस्वाभाविक गाम्भीर्य की मूर्ति बनी उस लोकोत्तर उज्ज्वल कक्ष में प्रातःकाल के परिचित भद्र पुरुष को सम्मुख देखकर देखती रह गई। वृद्धा ने झुककर सलाम किया और बालिका से ज़रा भर्त्सना से कहा बेअदब! महाराज को सलाम कर।

बालिका ने ज़रा आगे बढ़कर सलाम किया। महाराज ने उठकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और वृद्धा को भी बैठने का आदेश किया। सबके बैठने पर महाराज ने पूर्ववत् बालिका का हाथ पकड़कर वैसे ही हास्य-मुख से कहा-खूबसूरत तितली पकड़ी गई न!

बालिका ने नेत्रों से वही धारा छोड़ी। उसके होंठ फड़के, वह बोल न सकी, मां की ओर देखने लगी।

वृद्धा ने कहा-महाराज! सुबह अगर इसने कुछ गुस्ताखी की हो तो हुजूर माफ फर्माएं; लड़की बिलकुल बेअदब तो नहीं, मगर बच्ची ही तो है।

'कुछ नहीं, मगर इसने मुझे पागल बना दिया। मगर सच तो कहो, तुम दिल में नाराज़ तो नहीं? यह इन्तज़ाम तुम्हें दिल से तो पसन्द है?'

'यह इसकी और मेरी खुशकिस्मती है महाराज! आप यह क्या फर्मा रहे हैं? कहां यह कनीज़ और कहां हुजूर?'

महाराज बीच ही में बोल पड़े। उन्होंने कहा-मगर मुझे कुछ खास इन्त