पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/७०

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वेश्या
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जाम करना पड़ेगा, और तुम्हें उसमें मदद करनी पड़ेगी। तुम तो जानती ही हो, यह काम बहुत पोशीदा रहेगा।

खासकर यह मैं बिलकुल नहीं ज़ाहिर करना चाहता कि यह तवायफ है और मुसलमान है। मैं उसे हर तरह की ऊंची तालीम दूंगा, और उसका रुतबा महारानी के बराबर होगा। अभी पांच साल उसे तालीम पाने का वक्त है। तुम्हें तब तक वहीं उसके साथ रहना पड़ेगा। शहर के बाहर एक पारास्ता कोठी में तुम लोगों के ठहरने का बन्दोबस्त कर दिया जाएगा। वहां तुम्हें जहां तक मुमकिन होगा, कोई तकलीफ न होगी। अब कहो, इसमें तुम्हें कुछ उज्र है?

'मुतलक नहीं हुजूर, मगर मेरा वहां रहना कैसे मुमकिन हो सकता है, सरकार को शायद पता नहीं, मेरा निजू खर्च दो हजार रुपये माहवार है।'

'वह तुम्हें मिलेगा।'

'तब हुजूर के हुक्म को कैसे टाला जा सकता है।'

"तुम लोगों को हिन्दू-लिबास में रहना पड़ेगा, और क्या-क्या, कैसे-कैसे किया जाएगा, यह हिदायत कर दी जाएगी। उम्मीद है, समझदारी और होशियारी से काम लोगी। सिर्फ तुम दोनों मां-बेटियां चलोगी। तुम्हारा अपना एक भी नौकर न जाने पाएगा, समझी?'

'जो इर्शाद हुजूर!'

'तब बातचीत खत्म हुई। अब बेतकल्लुफी से खाना खानो-पीओ, मगर एक बात-इससे भी इसका क्या नाम है? गुलबदन!'

'इधर तो आयो प्यारी गुलबदन!' इतना कहकर उन्होंने बालिका का हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। फिर वही दृष्टि और वही उत्फुल्ल होंठों की फड़कन! महाराज ने अधीर होकर बालिका का प्रगाढ़ चुम्बन ले लिया। बालिका छटपटाकर महाराज के कर-पाश से भागी। वृद्धा ने घटना देखी-अनदेखी करके खाने का आयोजन किया। बालिका ने कहा-अम्मी चलो!

'ठहरो बेटी, महाराज की दावत में हम लोग आए हैं। फिर बिना खाए कैसे जा सकते हैं। बैठो और महाराज से हुक्म लेकर खाना खायो।'

बालिका चुपचाप बैठ गई। उसने महाराज की ओर झांककर भी न देखा।

खाना खत्म होने पर तत्काल मां-बेटी उठ खड़ी हुईं। माता के आदेश से भयभीत-सी होकर गुलबदन ने सलाम किया और चल दी। इसी समय नौकर ने