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वेश्या
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'सिर्फ एक खिदमतगार!' इसके बाद महारानी ने कर्मचारी से कहा-मुझे ज़रूरी काम से अभी बम्बई जाना है, आप लोग महाराज से अर्ज़ कर दें।

'मगर हुजूर! महाराज की तो आज्ञा नहीं है।'

'मैं महाराज की गुलाम नहीं हूं!'

'किन्तु महारानी...!'

'मैं जो कहती हूं, वह करो! ज़मीर, मेरा सामान डिब्बे में ले जाओ।'

आगन्तुक स्वागतार्थी सम्भ्रान्त पुरुषों को भीत-चकित करती हुई महोरानी गुलाबबाई उर्फ गुलबदन बेगम' भीड़ को चीरती हुई सामने खड़ी मेल-ट्रेन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेण्ट के रिज़र्व डिब्बे में बैठ गईं।

कुबेर-नगरी बम्बई में बीसवीं शताब्दी के समस्त वैभव पूर्ण विस्फारित हैं। सम्पदा और ऐश्वर्य का यह जीवन सम्पदा और ऐश्वर्य के उस जीवन से भिन्न है, जो रईसों और राजाओं को प्राप्त है। राजा-रईस खाली जेब रहने पर भी जो शान-ठाट और रईसी चोंचले करते हैं, वे इस कुबेर-नगरी में भरी जेबों से भी सम्भव नहीं। परन्तु धन जहां है, वहां विलासिता है ही, मुंह फाड़कर धन किसने खाया है? धन का यथार्थ मार्ग तो मूत्र-मार्ग है। धन ने जहां यह मार्ग देखा, फिर वह कहां रह सकेगा?

एक सजी हुई अट्टालिका में एक सुन्दर, किन्तु जरा भारी शरीर का युवक कौच पर पड़ा प्यासी आंखों से सामने हारमोनियम पर उंगली फेरती हुई सुन्दरी के मुख और उभरे हुए अधढके शरीर को देख रहा है। शराब का प्याला और सुगन्धित शराब का पात्र उसके निकट है। रह-रहकर वह मद्यपान कर रहा है। यह सब है, पर गाने का रंग नहीं जमता। विकल होकर सुन्दरी ने बाजा एक ओर सरका दिया, वह थककर एक कौच पर गिर पड़ी। युवक ने दौड़कर कहाक्या तबीयत अच्छी नहीं, प्यारी?

'नहीं, मुझे ज़रा चुप पड़ी रहने दो।'

'पर मुझसे नाराज़ तो नहीं हो?'

'नहीं, मगर मुझसे ज़रा देर बोलो मत।'

युवक स्तब्ध हुआ। सुन्दरी दीवार की ओर मुंह करके लेट गई। वह सोच रही थी, यह कैसा प्रारब्ध-भोग है! हे परमेश्वर! मैं कहां से कहां आ गिरी?