पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/७५

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वेश्या
 


भाग्य-चक्र भी कैसा है? उसमें और इसमें कितना अन्तर है, पर जो हो गया वह तो अब लौट सकता नहीं। परन्तु...। उसके मुंह से एक सांस निकली, वह तड़प उठी।

युवक ने उठकर उसका सिर गोद में लेकर कहा-गर्मी के कारण तुम्हारी तबियत खराब हो गई है, चलो ज़रा समुद्र के किनारे घूम आएं। गाड़ी बाहर है ही।

सुन्दरी सहमत हुई। क्षण-भर में गाड़ी उन्हें लेकर हैंगिंग गार्डन की ओर उड़ रही थी। हठात् एक मोटर बड़े ज़ोर से टकरा गई। ड्राइवर के हज़ार सावधानी करने पर भी युवक औंधे मुंह गिर पड़े। सुन्दरी ने सामने की मोटर में बैठे व्यक्तियों को देखा, उसके मुख से चीख निकल गई। वह सहम कर सीट पर चिपक गई। एक व्यक्ति ने ललकार कर कहा-नाक काट लो।

उसके हाथ में रिवॉलवर था। दूसरा व्यक्ति धीरे-धीरे मोटर की ओर बढ़ा। सुन्दरी औंधे मुंह गाड़ी में लोटकर चिल्लाने लगी। युवक ने आगे बढ़कर आततायी को रोककर उसे एक धक्का दिया और उसी क्षण एक गोली उसकी छाती को चीरती हुई निकल गई। आततायी युवती पर छुरी लेकर चढ़ गया।

अभी दिन काफी था। सड़क पर यथेष्ट यातायात था। बहुत लोग झुक पड़े। आततायी अब भागने का उपक्रम करने लगे। परन्तु पुलिस की सावधानी और भीड़ की मदद से वे गिरफ्तार हुए। सुन्दरी भयभीत और साधारण घायल अवस्था में अस्पताल में पहुंचाई गई।

होश में आने पर उसने अस्पताल के कमरों की खिड़कियों पर दृष्टि गाड़कर देखा-कितनी स्मृतियां आईं और गईं। उस शून्य में उसकी दृष्टि गड़ गई। उसके होंठ फड़के, पर हाय! वहां उस फड़कन को देखने वाला कौन था!

युवती दोनों हाथों से मुंह दबा कर रोने लगी-हाय! मैंने क्या किया?

'क्या हुआ?'

'तीन को कालापानी, दो को फांसी, एक पागल हो गया।

'पागल हो गया?'

'जी हां।' '

मगर सभी को फांसी क्यों न हुई?'-फन कुचली हुई नागिन की तरह