'मगर गुलबदन! मैं राजा तो नहीं!'
'फिर रानियों पर क्यों मन चलाया?'
'रानी भी तो राजी थी!'
'रानी बनी रहे तभी तक!'
'वरना?'
'वरना? वरना रास्ता नापो, मैं अपना ठिकाना देख लूंगी!'
'तुम-तुम यह कहती क्या हो? मैं तुम्हारा शौहर हैं।'
'ज़िन्दगी और जिस्म सलामत रहेगा तो ऐसे हज़ार शौहर पैरों के तलुए सहलाएंगे!'
'तुम्हारा इरादा क्या है?'
'तुम अपना रास्ता देखो, और मैं अपना!'
'यह नहीं होगा!'
'यही होगा, तुम्हारी क्या हैसियत जो मेरी मर्जी के खिलाफ चूं करो!'
'क्या यही तुम्हारा इरादा है?'
'यही है।'
'मैं तुम्हें जान से मार डालूँगा!'
'इसकी इत्तिला अभी मैं पुलिस को किए देती हैं।'
सुन्दरी ने टेलीफोन पर उंगलियां घुमाई, खुवक ने घुटनों के बल बैठकर कहा -खुदा के लिए, गुलबदन, ऐसा जुल्म न करो!
'कहती हूं सामने से हट जाओ, वरना ज़लील होना पड़ेगा!'
युवक की आंखों से पहले आँसू फिर आग की ज्वालाएं निकलीं। उसने कहा -उफ बेवफा रण्डी! और वहां से चल दिया।
दिल्ली में बड़े-बड़े पोस्टर चिपके दीख पड़ते थे, और आबाल-बृद्ध उन्हें पढ़ और चर्चा कर रहे थे। प्रसिद्ध गुलबदन का मुजरा स्थानीय थिएटर में होगा। लोगों के दिल गुदगुदाने लगे। राजगद्दियों को विध्वंस करनेवाली, फांसी और कालेपानी की सीधी सड़क, लगातार शौहर बनाने और बिगाड़नेवाली, वह अद्भत वेश्या कैसी है? थिएटर के द्वार पर उसका एक रंगीन फोटो कांच के आवरण में लगा दिया गया था। लोग देख रहे थे और जीभ चटखा रहे थे।