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भाई की विदाई
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इसके बाद बातचीत बन्द हुई। विवाह-मंडप में मंगल-वाद्य बज रहे थे। पुरोहित उपस्थित थे। बालिका चुपचाप विवाह-वेदी पर जा बैठी। विवाह-कार्य संपन्न हुआ। युवक उसी रात विदा हो गया।

वह जेल के फाटक पर उपस्थित थी। विवाह की हल्दी उसके शरीर पर थी और कंगना हाथ में। लाश उसने ले ली। उसने देर तक उस वीर युवक का तेजपूर्ण मुख देखा, अभी भी शरीर में कुछ गर्मी और चेहरे पर लाली थी। उसने अपने आँचल से उसका मुंह पोंछा, रोली का टीका लगाया, राखी भी बांधी और माथा टेककर प्रणाम किया। इसके बाद उसने वहीं खड़े होकर मन ही मन कुछ प्रण किया, और चल दी।