पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१२

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उतारा जा सकता है। परन्तु घिन के ऊपर मे चरिश की कुछ भी कल्पना नहीं हो सकती और न चित्र पर मे किमी प्रकार का अनुः मान इस विषयका लगाया जा सकता है । गुशाई तुलसीदास जी ने भी नाम की महिमा रूप अर्थात चित्र से अधिक पर्णन की है । गुगाई जी ने लिया है:-

"देसिय रुप : नाम साधीना * रूप ज्ञान नहिं नाम बिहीना।

रूप विशेष नाम घिन जाने * फरतल गत न परहिं पहिचाने ।,

समिरिय नाम रूप दिन देरो * आयत हृदय सनेह विशेपे।

नाम रूपगति प्रकथ कहानी * समुमत मुखद न नात यखानी ।

प्रगुण सगुण विचनाम सुमाखी * उभय प्रयोधक चतुर दुभाखी।"

इन सय यातों के लिखने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य के चरित्र के पश्चात् उसके चित्र की फ़दर होती है। इसी कारण हम ने उन संज्जन पुरुषों के चरित्रों का संग्रह किया जिनके चरित्र अनुकरणीय और चित्र दर्शनीय हैं। भारतवर्ष में आज २३ वर्ष से भारतवासियों के दुःख दूर करने के लिए 'इण्डियन नेशनल कांग्रेस'-'भारतीय राष्ट्रीयसभा'-होती है। उस सभा द्वारा भारत के दुःख निवारणार्थ, भारतीय प्रणा, प्रतिनिधि गण सरकार से प्रार्थना करते हैं और प्रजा के दुःखों का समा. चार सरकार के कानों तक पहुंचाते हैं। हरसाल एक भारतहितैषी उस सभा, के लिए सभापति चुना जाता है उन्हीं सभापतियों के चरित संक्षेप रूप से इस पुस्तक में दिए गए हैं। क्योंकि जो लोग अंग- रेजीभाषा नहीं जानते उन्हें इस बात का बिलकुल ज्ञान नहीं कि कांग्रेस क्या चीज़ है, उसके उद्देश क्या हैं और कौन कौन पुरुप उसमें किस प्रकार पर काम करते हैं ? राष्ट्रीय समा का.सान जब तक देशव्यापी न होगा तब तक उसके उद्देश्यों की सुफलता में सन्देह है। परन्तु अब यहां पर प्रश्न यह हो सकता है कि राष्ट्रीयसभा के उद्देश्य देशव्यापी किस प्रकार हो सकते हैं ? उसका उत्तर भी बहुत ही सहल है । अर्थात राष्ट्रीय उद्देश्यों का प्रचार राष्ट्रीय भापा में करने से बहुत ही शीघ्र सफलता प्राप्त होगी। संसार में किसी राष्ट्र की ओर नज़र उठाकर देखो तो प्रापको सहज ही में मालूम हो जायगा फि उन्नति का मूल कारण