पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/२७

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दादा भाई नौरोजी। - प्रसन्न कर लिया। हर एक इत्मिदान में इनको कुछ न कुछ इनाम ज़रूर मिलता । अगरेजी की प्राथमिक शिक्षा सतम करके ये उच्च शिक्षा का अभ्यास करने लगे। मिसेस पोस्टन नाम की एक लेखिका ने अपनी पुस्तक "पश्चिम हिन्दोस्तान' में दादा भाई के विषय में लिखा है कि इस समय विद्यार्थियों में एक छोटा, परन्तु बहा तेज़, लड़का था। सप्तका तेज पुंज और विशाल भाल तथा सतेज नेत्र देख कर, देखने वाले का मन उसकी ओर अपने श्राप सिंच जाता था । जय लड़कों से सवाल किया जाता था तब यह बाल-विद्यार्थी सय से पहले अपना हाथ बढ़ाता और उत्सुकता दिखाता कि कब उसकी पारी भावे और यह सवाल का जवायदे ! गणित और सिद्धान्त प्रश्नों के उत्तर तो, उसी दम वह बतला देता था । सवाल करने की रीति भी उसकी बड़ी भारवर्य जनक थी । उसे अपने साथियों में अग्रसर होने की यही प्रवल इच्छा थी। उसकी बुद्धि की चपलता देख कर, ऐसा मालूम होता है कि वह भागे कोई बड़ा प्रसिद्ध पुरुप होगा"। उच्च शिक्षा सम्पादित करते समय जब उनके ज्ञान का विकास दिनों . दिन होने लगा त उनके मुख्य अध्यापक प्रोफेसर अलिवर अक्सर कहा करते थे कि दादा भाई नौरोजी भारत की भावी आशा (India's future Hope) हैं । दादा भाई ने अपने गुरु की इस भविष्य वाणी को सच्चा कर के दिखला दिया ! सन् १८४५ में यम्बई प्रान्त की शिक्षा विभाग के सभापति सर आस्किनेपरी साहा ने यह प्रस्ताव किया कि दादा भाई को फ़ानून पढ़ने के लिए विलायत भेजना चाहिए । दादाभाई के पढ़ने का कुल मर्च साहब बहादुर ने देना स्वीकार किया; परन्तु उस समय तक जितने पारसी विलायत हो पाए थे उन सवों के प्राधरण नष्ट भृष्ट हो गये थे। इसी कारण दादा भाई के घर के लोगों ने उन्हें विलायत जाने न दिया। दादा भाई की विद्वता को जान कर प्रिन्सिपाल हार्कनेम साहब ने उन्हें एक साने का पदक दिया। कुछ दिनों के बाद वे एलफिन्स्टन