पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/१०

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काजल की कोठरी
 

छन म एक झाड ये चारा तरफ रद्दफ दील सट रही थी जमीन पर पा, मुफेद पश विधा हुआ था, एक तरफ मगमरमर की चौकी पर लिसन पढने का सामान भी मौजूद था। बाहर वाली तरफ छोटी छोटी तीन सिडपिया थी जिनमे स मनाक मामन वाता रमना अच्छी तरह दिखाई देता था। उही खिडक्यिो मे से एक खिडकी के आगे चारपाई बिछी हुई थी जिस पर रल्याणमिह सोहे और पाही ही दर में उन्हें नीत आ गई।

वल्याणसिंह तीन घण्ट तक बराबर गाते रह इसन बाद खडखडाहट की आवाज आने में कारण उनको नीद गुन गई। देखा कि कमरे के एक कान में छत से कुछ पकडिया गिर रही । कल्याणसिंह ने साचापि शायद चूहा न छत मे बिल दिया होगा और हमी मबब से करडिया गिर रही है पर तु कोई चिता नहीं कल-परमाग इसपी मरम्मत परा दी जायगी उम ममम घण्ट भर और आगम कर ? चाहिए यह गान मुह पर चाल का पल्ला रख सो रहे और उह नीद पिरमा गई।

माघण्टे बाल धमरे व उमी बोन म स जहा स कडिया गिर रही थी धमाके की आवाज आई जिमसे कल्याण सिंह को आख खुल गई। वह प्रवडा कर उठ बैठे और चारो तरफ देखन नगे पर तु रोगनी गुत्र हा जाने के गवव इस समय कमरे म य घेरा हो रहा था। उस बात का ताज्जुब हुआ कि शमालान किसने गुल पर 'या' वह पवावर उठ खडे हुए और विमी तरह दरवाजे तक पहुच जार दरवाजा खाल कमरे में बाहर आये। उस सम्म एक पहरेदार सिपाही के सिवाय वग और काई भी न था, सब महफ्लिम चले गए थे और नौवर चारर भी पाग-17 म “ग थे । कल्याणमिह मिपाही मे तालटेन राने में निरा यहा। गिपागे तुरत लालटेन बार रल जाया और रल्याणसिंह दे माय नमरे अदर गया । कल्याणसिंह न बबी दपे उस पाने मन का पिटारा पडा हुआ देखा जहा स पहिली दफनी सुलन की अवस्थामकडिया गिग्न का आवाज आई थी।वल्याण मह नो बगही माज्जुब हुआ और वह डरने उरते उस पिटारे के पास गए। पिटार के चारो तरफ ररपी लपटी हुई यो और बहुत ा रस्गा भी उसी जगह पटा हआ पा जिगमा