पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/२०

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20 काजर की कोठरी मे विजली पैदा कर दी। कहा तो वह दीवार के सहारे सुस्त बैठा हुआ सव वातें सुन रहा और आखो से आसू की बूदें गिरा रहा था, कहां यकायक महलगर वठ गया क्रोध से बदन कापने लगा, आसू की तरी एकदम गायव होकर आखो ने अगारो की सूरत पैदा की और साथ ही इसके वह लम्बी- लम्बी सासें लेने लगा। उस समय लालसिंह ने पास उसके चारा भतीजे--राजाजी, पारस- नाय, घरनीघर और दौलतसिंह तथा और भी कई मादमी जि है वह अपना हिती समझता था बैठे हुए थे और सभी की सूरत से उदासी और हमदर्दी झलक रही थी। हरन दन और वादी वाली खवर सुनकर जिस ममय लाल- सिंह क्रोध मे आकर चुटीले साप की तरह फुकारने लगा उस समय उन लोगो ने भी नमक मिच लगाना आरम्भ कर दिया। एक देखने-सुनने और बातचीत से तो हरलटन बडा नर और बुद्धि- भान मालूम पडता था। दूसरा मनुष्य का चित्त अदर-बाहर से एक नही हा सकता। तीसरा मुझे तो पहिले ही से उसके चाल चलन पर शक या मगर लोगो मे उसकी तारीफ इतनी ज्यादे फैली हुई थी कि मैं अपने मुह से उसके खिलाफ कुछ कहने का साहस नहीं कर सकता था। चौथा बुद्धिमान ऐयाशो का यही हग रहता है। पाचवा असल तो यो है कि हरनदन को अपनी बुद्धिमानी पर धमट भी हद्द से ज्यादे है। छठा नि सन्देह ऐसा ही है। उसने तो केवल हमार लालसिंहजी का धोखा देने के लिए यह रूप बाधा हुआ था नही तो वह पक्का बदमाश और पारस० (लालसिंह का भतीजा) अजी मैं एक दफे (लालसिंह की तरफ इशारा करके) चाचा साहब से कह भी चुका था कि हरन दन को जैसा आप समझे हुए हैं वैसा नहीं है मगर आपने मेरी बातो पर कुछ ध्यान ही नहीं दिया उल्टे मुझी का उल्लू बनाने लगे। लाल• वास्तव में मैं उस बहुत नेक शदमी समझता था । पारस. मैं तो आज भी डर की चोट कह सकता है कि बेचारी ,