पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३२

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32 काजर की वारद - 17 हूँ कि बिना मेरी मर्जी मै रिसी का ऊपर न आन दें। बादी (ताज्जुब से) हा।। हरनादन (जोर देवर) हा और आज मैं यहा बहुत र नक बठूगा बल्कि तुम्हारा मुजरा भी सुनूगा। डेर पर मैं सभी से यह आमा हु कि 'मैं बादी के यहा जाता है, अगर कोई जरूरत आ पडे तो वही मुव खबर देना।' मैं तो बाप का हुक्म पाते ही इस तरफ को रवाना हुआ और यहा पहुच कर बडी आजादी के साथ घूम रहा है। आज से तुम मुझ अपना हो समझो और विश्वारा रखो कि तुम बहुत जल अपने को विनी और ही रग-रग मे देखोगी। वादी (खुशी सहनदन के गले में हाथ डाल के ) यह तो 'तुमन वडी खुशी की बात सुनाई | मगर रपये-पैस की मुझे कुछ भी चाह नही है मैं सो सिफ तुम्हारे साभ रहने म खुश हू चाह तुम जिस तरह रखो। हरनन्दन मुझ भी तुमस ऐसी ही उम्मीद है । अब जहातक जल्द हा सके तुम उस काम को ठीक करके पारसनाथ को जवाब दे दो और इस भकान को छोड कर किसी दूसरे मालीशान मकान मे रहने का बन्दोबस्त करा ! अब मुझे सरला का पता लगाने की कोई जरूरत तो नही रही मगर फिर भी मैं अपने बाप को सच्चा किए बिना नहीं रह सकता जिसने मेहर बानी करके मुझे तुम्हारे माप वास्ता रखने के लिए इतनीआजादी दे रक्सी है और तुम्ह भी इस बात का खयाल जरूर हाना चाहिए। वे चाहते ह कि सरला लालसिंह के घर पर पहुचजाय और तब लाल सिंह देखें कि हरन दन मरला के साथ शादी न करके बादी के साथ कैसे मजे मे जिन्दगी बिता रहा है। बादी जरूर ऐसा हाना चाहिए ! मैं आपसे वादा करती हनिचार दिन वे अदर ही सरलाकापता लगाने पारसनाथ का मुह काला वरूणी ] हरन दन (शादी को पीठ पर हाथ फेरके) शादाश ।। बादी यद्यपि आपको अब किसी का हर नहीं रहा और विल्कुल आजाद हो गए हैं मगर मैं आपको राम देती है कि दातीन दिन अपनी आजादी को छिपाए रखिए जिसमे पारसनाथ से मैं अपना काम बखूबी निकाल तू। 1