पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काजर की पाठरी किया जायेगा और तर्कीवा के साथ एक तर्कीब यह भी होगी कि हरनन्दन के हाथ की लिखी हुई चिट्ठी सरला को दिखाई जाएगी जिसमे मरला से घणा और उसको निदा होगी। पारस० (बात वाट कर) ठोर है, ठीक ह अब मैं समझ गया । शाबाश ', बहुत अच्छा सोचा ' सरला हरनन्दन के अक्षर पहिचानती भी है। (उठता हुआ) अच्छा तो मेरे जाने का रास्ता ठीक कराओ, वह कम्वरम मुझे देखने न पाव। बादी बस तुम सीढी के बगल वाले पायखाने में घुसकर खडे हो जाजो जब वे पर आ जाय तब तुम नीचे उतर जाना और गली के रास्ते बाहर हा जाना क्योकि सदर दर्वाजे पर उनके आदमी होंगे। पारस० (मुस्कराते हुए) बहुत खूब । रडियो के यहा आन का एक नतीजा यह भी है कि कभी-कभी पायखाने का आनद भी लेना पडता है। इसके बाद जवाब मे वादी ने मुस्कराकर एक चपत (थप्पड) से पारसनाथ की खातिर की और मटकती हुई नीचे चली गई। जब तक हरनन्दन बाबू को लेकर वह ऊपर न आई तब तक पायखाने का विमल अथवाममल आनन्द पारसनाथ को भोगना पडा। गादी की अम्मा पारसनाथ से मनमाना पुर्जा लिखवा कर नीचे उतर गई और अपने कमरे म न जाकर एक दूसरी वोठरी मे चली गई जिसमे सुल- नानी नाम की एक लौडी का डेरा था। यह सुलतानी लौडी पुरानी नहीं है बल्कि बादी के लिए दिलकुल ही नई है । आज चार ही पाच दिन से इसने बादी के यहा अपना डेरा जमाया है। इसकी उम्र चालीस वप से कम न होगी। बातचीत मे रोज,चाला और बड़ी ही धूत है। दूसरे को अपने ऊपर मेहरवान बना लेना तो इसके बाए हाथ का करतब है । यद्यपि उम्र के लेहाज से लोग इसे बुढिया कह सक्ते हैं, मगर यह अपने को बुढिया नहीं समझती । इसका चेहरा सुडौल और रग अच्छा होने के सबब से बुढापे का दखल जैसा होना चाहिए था न हुआ या और अब भी यह खूबसूरतों के बीच मे बैठकर अपनी लच्छेदार बाता से सभी का दिल खुश कर लेने का दावा रखती है। इसने बादी के घर पहुंच